हमारे देश में पारिवारिक-सामाजिक जड़ें गहरी हैं। दोस्त-मित्र और रिश्तेदार मजबूत सपोर्ट सिस्टम का काम करते हैं, जिनसे काफी हद तक महिलाओं की मानसिक सेहत ठीक रहती है। इसका दूसरा पहलू यह है कि महिलाएं जिम्मेदारियों के बोझ से लदी हैं, मगर ना तो उन्हें बराबरी का स्तर मिल पाता है, ना उनके कामों को उचित सम्मान मिलता है, जिसकी वजह से स्त्रियां नाखुश रहने लगती हैं। हाल-फिलहाल हुए अध्ययन और सर्वे कहते हैं कि महानगरों में खासतौर पर कामकाजी महिलाओं में एंग्जाइटी, स्ट्रेस और डिप्रेशन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। वर्ष 2022 में डब्लूएचओ की ग्लोबल मेंटल हेल्थ रिव्यू में कहा गया कि दुनिया में प्रति 8 व्यक्तियों में एक व्यक्ति मेंटल डिस्ऑर्डर से जूझ रहा है। कोविड-19 के बाद यह समस्या बढ़ी है। डब्लूएचओ का कहना है कि भारतीय दुनिया के सबसे उदास लोग हैं। महिलाओं में डिप्रेशन के मामले पुरुषों की तुलना में 50 फीसदी अधिक हैं।
मेंटल डिस्ऑर्डर और जेंडर
फोर्टिस हॉस्पिटल, वसंत कुंज, नयी दिल्ली में मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज डिपार्टमेंट के मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. त्रिदीप चौधरी कहते हैं, "पुरुषों व स्त्रियों की शारीरिक-मनोवैज्ञानिक संरचना भिन्न होती है। ऐसे में जेंडर का मानसिक सेहत से गहरा नाता है। साइकोलॉजिकल डिस्ट्रेस व डिस्ऑर्डर का पैटर्न भी स्त्री व पुरुष में अलग-अलग होता है। स्टडीज के अनुसार, स्त्रियों में आंतरिक डिस्ऑर्डर ज्यादा हैं, जबकि पुरुषों में बाहरी डिस्ऑर्डर अधिक हैं। सामाजिक तत्व, खासतौर पर जेंडर आधारित भूमिकाओं का प्रभाव मन पर पड़ता है। पिछले 3-4 दशकों में शिक्षा व रोजगार में महिलाओं का दखल बढ़ता गया है। लेकिन बाहरी जिम्मेदारियों के साथ घरेलू दायित्व कम नहीं हो पाए हैं। एक खास वर्ग को छोड़ दिया जाए, तो ज्यादातर कामकाजी महिलाओं की सामाजिक स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ है। एक ही समय में वे बच्चों की पढ़ाई या कैरिअर के लिए जूझ रही हैं, तो घर में बुजुर्गों की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर होती है। इन दायित्वों के कारण कई बार उनका कैरिअर दांव पर लग जाता है। ये तमाम कारक उनकी मानसिक सेहत को प्रभावित करते हैं।"
भेदभाव - हिंसा से आहत मन
Bu hikaye Vanitha Hindi dergisinin October 2023 sayısından alınmıştır.
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