अगर हम आपसे पूछें कि आपके जीवन में आपकी सास का क्या रोल है? तो ज्यादातर महिलाएं इस सवाल पर कंधे उचका देंगी या मुंह सिकोड़ लेंगी, हां, लेकिन अगर आप एक वर्किंग वुमन हैं, तो ऐसी प्रतिक्रिया देने के बाद जब गंभीरता से सोचेंगी, तो शायद खुद ही आपको जीवन में सास का महत्व समझ आ जाएगा। जी हां, लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं, जो घर से बाहर नौकरी करने निकलती हैं, उनका यह मानना है कि उनकी सास घर में रह कर बच्चों की देखभाल से ले कर घर संभालने का काम बखूबी करती हैं।
बर्लिन के यूरोपियन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी में इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर राजश्री जयरामन ने पिछले साल भारत में महिला रोजगार पर एक सर्वे किया। इस सर्वे में आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की कम भागीदारी का कारण जानने की कोशिश की गयी थी। इस सर्वे में जो सबसे मजेदार बात निकल कर आयी, वह यह थी कि जो महिलाएं अपने ससुर के साथ रहती हैं, वे पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण घर से बाहर नौकरी करने नहीं जा पातीं, जबकि जो महिलाएं सास के साथ रहती हैं, वे ज्यादा नौकरी करने के लिए जा पाती हैं।
दरअसल, इसकी बड़ी वजह पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं। घर में किसी महिला के होने से सभी सदस्य पारिवारिक जिम्मेदारियों को ले कर आश्वस्त रहते हैं। फिर चाहे वह बेटा हो, बेटी हो या फिर बहू हो। हमारे समाज में आज भी लड़कियों से यह अपेक्षा की जाती है कि शादी के बाद पति के परिवार के साथ रहे और उनके मुताबिक थोड़ा-बहुत एडजस्ट भी करे।
बचपन से ही लड़कियों के मन में ससुराल की एक छवि बना दी जाती है, जो कड़े अनुशासन, ज्यादा ना बोलना, सबकी बात सुनना और खासकर से सास के ताने सुनने का पर्याय हुआ करती थी। लेकिन अब स्थितियां अलग हैं। समाज के तानेबाने में काफी बदलाव आने के साथ रिश्तों के समीकरण में भी बदलाव आया है। पहले जमाने की दबंग सास आज के जमाने की कोऑपरेटिव सास में बदल चुकी है। या यों कहना चाहिए कि सास-बहू के रिश्ते में से तल्खी की जगह दोस्ती ने ले ली है। बहू देर तक सो कर उठे, बाहर घूमने जाए या देर रात को घर लौटे, सास अब उसकी लाइफ में हस्तक्षेप करना पसंद नहीं करती। 'हम भी तो पूरा घर अकेले ही संभालती आयी हैं' जैसे जुमले से ले कर 'वह बेचारी भी घर और ऑफिस की दोहरी जिम्मेदारी उठाती है, तो थक जाती होगी' तक का सफर तय किया है। सास-बहू के रिश्ते ने।
Bu hikaye Vanitha Hindi dergisinin May 2024 sayısından alınmıştır.
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