बेहद कम उम्र में मां का साथ हमेशा के लिए छूटने के बाद अवंतिका लखनऊ स्थित पिता का घर छोड़, देहरादून अपने ननिहाल चली गयीं। वहां डीएवी कॉलेज से बीकॉम किया। किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं, तो एक बुटीक में काम करना शुरू कर दिया। लेकिन वहां कोई ग्रोथ न देख, 2005 में वे फूड इंडस्ट्री से जुड़ गयीं। अवंतिका बताती हैं, "मैंने बहुत छोटे स्तर से काम करना शुरू किया था। 'पिज्जा हट' में फोन पर ऑर्डर लिया करती थी। धीरे-धीरे किचन में सेवाएं देने लगी। मैनेजर को काम पसंद आया तो कम ही समय में मुझे प्रमोशन मिल गया। फिर 'द डॉमिनोज', 'बरिस्ता' जैसी कंपनियों के साथ काम करके इस इंडस्ट्री को और करीब से समझा। किसी भी अकेली महिला की तरह मेरे समक्ष भी चुनौतियां आयीं। लेकिन मैं उन्हें नजरअंदाज कर, खुद पर विश्वास रख आगे बढ़ती गयी।"
पहला कदम
फूड इंडस्ट्री में अनुभव प्राप्त करने के बाद अवंतिका को महसूस हुआ कि उन्हें कुछ अपना करना है। उन्होंने पार्टनरशिप के जरिये बिजनेस के फील्ड में कदम रखा और कैफे एलिपिनोज के नाम से एक छोटा-सा वेंचर शुरू किया। उससे काफी सीखने को मिला कि एक बिजनेस को कैसे चलाया जाता है। अवंतिका बताती हैं, "जब एक बिजनेस सफलतापूर्वक चल पड़ता है, तो कुछ और बड़ा करने की आपकी उम्मीदें बढ़ जाती हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। पार्टनरशिप में एक और वेंचर की नींव पड़ी। लेकिन एक समय आया, जब लगा कि दूसरों के साथ काम करने के बजाय क्यों न स्वतंत्र रूप से अपना बिजनेस करूं। इसके पश्चात ही वर्ष 2019 में माया कैफे की शुरुआत हुई। बिजनेस में मेरा साथ मेरे भाई दे रहे हैं।"
कोविड महामारी के दौरान कैफे
Bu hikaye Vanitha Hindi dergisinin May 2024 sayısından alınmıştır.
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