कई बार इंसान शारीरिक या मानसिक रूप से इतना लाचार हो जाता है कि उसे लगता है कि अब उसके लिए कुछ नहीं बचा, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा छाया दिखता है। वाकई अपंगता कभी भी हो सकती हैं, जन्मजात, किसी दुर्घटना के कारण या किसी रोग से ग्रस्त होने से। लेकिन विपरीत परिस्थितियों में जो हिम्मत नहीं हारते, वे हमारे लिए आदर्श बनते हैं। दर्जनों ऐसे दिव्यांगजन हैं, जो शारीरिक कमी के बावजूद अपने-अपने फील्ड में ऊंचे मुकाम तक पहुंचे, किसी अंग का ना होना उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। अपने देश में वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की कुल जनसंख्या का 2.21 प्रतिशत यानी करीब 2.68 करोड़ दिव्यांगजन हैं। दुनिया भर में 3 दिसंबर को विश्व दिव्यांग दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस बार की थीम है-समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिए विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना। विश्व दिव्यांग दिवस के मौके पर बॉडी माइंड सोल में हम दिव्यांगजनों के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं।
क्या है दिव्यांगता
जब व्यक्ति किसी शारीरिक या मानसिक कमी की वजह से सामान्य इंसानों की तरह काम करने में परेशानी का अनुभव करता है या असमर्थ होता है तो उसे दिव्यांगता कहते हैं। दिव्यांगता के कारण व्यक्ति को सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने में दिक्कत होती है। जैसे एक व्यक्ति का पैर किसी दुर्घटना में कट जाए तो उसे चलने में परेशानी होती है। कोई अपनी आंखें गवां बैठे तो सामान्य व्यक्ति की तरह वह देख नहीं सकता। पोलियो ग्रस्त पैर, सुनाई ना देना या दिमागी संतुलन खो बैठना आदि दिव्यांगता की श्रेणी में आते हैं।
कितनी तरह की दिव्यांगता
Bu hikaye Vanitha Hindi dergisinin December 2024 sayısından alınmıştır.
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