नए वर्ष के स्वागत की औपचारिकताओं के बीच यह कलैंडर वर्ष भी हर साल की तरह एक बार फिर अपनी केंचुली बदललेगा. लेकिन इस कलैंडर वर्ष में देश की आबादी के सब से बड़े हिस्से के किसानों ने क्या खोया और पाया क्या, इस पर निष्पक्ष चिंतन जरूरी है.
कह सकते हैं कि वर्ष 2022 की शुरुआत किसानों के मोरचे पर अस्थाई युद्ध विराम से हुई. दरअसल, तीनों कृषि कानूनों को वापस करवा कर किसानों ने कुछ हद तक देश की खेतीकिसानी का भविष्य तो बचाया, पर उन के वर्तमान के दोनों हाथ आज भी बिलकुल खाली हैं.
वर्ष 2021 की शुरुआत में देश का किसान तीनों कृषि कानूनों के मोरचे पर सरकार से भले ही तात्कालिक रूप से जीत गया, किंतु कोरोना के कहर, डीजल, खादबीज, दवाई की बढ़ती मार और पक्षपाती बाजार तीनों ने मिल कर उस की कमर तोड़ दी.
यों तो माना जाता है कि नए वर्ष का स्वागत खुशनुमा खबरों से किया जाना चाहिए. अतः देश की आर्थिक समृद्धि की अगर बात करें, तो हमें गुलाम बना कर 200 वर्षों तक हम पर राज करने वाले इंगलैंड को पछाड़ कर, वैश्विक अर्थव्यवस्था में 5वें स्थान का ताज हासिल किया है.
और हां, अब तो हम जी-20 के अध्यक्ष भी हो गए हैं. अब भला हमें और क्या चाहिए, खुशफहमी पालने के लिए इतना क्या कम है? लेकिन, क्या सचमुच देश में मिलियनर्स की बढ़ती संख्या देश के किसानों के लिए कोई अच्छा लक्षण है ?
देश के किसानों की आय में वृद्धि अथवा देश में अरबपतियों की बढ़ती संख्या दोनों में से देश की आर्थिक समृद्धि का वास्तविक सूचकांक आखिर आप किसे मानेंगे ?
सिक्के का दूसरा पहलू भी जरा देखिए. भारत सरकार की 'द सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे औफ फार्मर' का कहना है कि पिछले सालों में भारत के किसान औसतन केवल 27 रुपए की रोज की कमाई कर पाए हैं.
कृषि मंत्रालय ने अन्नदाताओं की आय से संबंधित जो सब से ताजा आंकड़े जारी किए थे, उस के मुताबिक, भारत का किसान परिवार प्रतिदिन औसतन 264.94 रुपए यानी 265 रुपए कमाता है. यह एक व्यक्ति की आय नहीं है, बल्कि 5 सदस्यों के परिवार की औसत आय है.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin January First 2023 sayısından alınmıştır.
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फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' के अधिकारी हुए सम्मानित
भारत में काम करने वाली संस्था 'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' से जुड़े 3 अधिकारियों संस्थापक ट्रस्टी सुनील वर्गीस, संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक और प्रोजैक्ट हैड सुनील पांडेय को गरीबी उन्मूलन और जीरो हंगर पर काम करने के लिए 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से नवाजा गया.
लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसानों का सम्मान
पहली बार बड़े लैवल पर 'फार्म एन फूड' पत्रिका द्वारा राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आए तकरीबन 200 किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से सम्मानित किया गया.
बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 7 अक्तूबर, 2024 को मूंगफली पर अनुसंधान एवं विकास को उत्कृष्टता प्रदान करने और किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.
अक्तूबर महीने में खेती के खास काम
यह महीना खेतीबारी के नजरिए य से बहुत खास होता है इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
किसान ने 50 मीट्रिक टन क्षमता का प्याज भंडारगृह बनाया
रकार की मंशा है कि खेती लाभ का धंधा बने. इस के लिए शासन द्वारा किसान हितैषी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
खेती के साथ गौपालन : आत्मनिर्भर बने किसान निर्मल
आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना का लाभ ले कर उन्नत नस्ल का गौपालन कर किसान एवं पशुपालक निर्मल कुमार पाटीदार एक समृद्ध पशुपालक बन गए हैं.
जीआई पंजीकरण से बढ़ाएं कृषि उत्पादों की अहमियत
हमारे देश में कृषि से जुड़ी फल, फूल और अनाज की ऐसी कई किस्में हैं, जो केवल क्षेत्र विशेष में ही उगाई जाती हैं. अगर इन किस्मों को उक्त क्षेत्र से इतर हट कर उगाने की कोशिश भी की गई, तो उन में वह क्वालिटी नहीं आ पाती है, जो उस क्षेत्र विशेष \" में उगाए जाने पर पाई जाती है.
पराली प्रबंधन पर्यावरण के लिए जरूरी
मौजूदा दौर में पराली प्रबंधन का मुद्दा खास है. पूरे देश में प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी तबाह कर रहा है और प्रदूषण का दायरा बढ़ाने में पराली का सब से ज्यादा जिम्मा रहता है. सवाल उठता है कि पराली के जंजाल से कैसे निबटा जाए ?