लो टनल या रो कवर्स संरक्षित खेती में अच्छा उत्पादन लेने की एक तकनीक है. अपेक्षाकृत बहुत कम लागत में फसल तैयार हो जाती है और थोड़े समय (3-4 महीने) में इस से मुनाफा कमा सकते हैं.
इस से खेतों मे धोरेनुमा क्यारियां बना कर उन पर विशेष तरह से सुरंग का आकार देते हुए प्लास्टिक को लगाया जाता है. इस में प्लास्टिक की 200 माइक्रोन फिल्म लगानी उचित है.
इस तकनीक से हम एक तरह की पौलीटनल यानी एक लोहे का सरिया, बांस की डंडियों की सहायता से सुरंग का निर्माण करते हैं. इस की ऊंचाई 1-1.5 फुट तक रखते हैं और लंबाई खेत के आकार के आधार पर रखते हैं. इस में सुरंग के दोनों सिरों को बंद कर देते हैं, जिस में समयसमय पर इस प्लास्टिक को ऊंचा कर के अपनी फसल में निराईगुड़ाई, खाद मिलाना आदि क्रियाएं करते हैं.
इस सुरंगनुमा भाग में ड्रिप सिस्टम लगा कर उसे ट्यूबवैल से जोड़ दिया जाता है. इस में करेला, लौकी, खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, खीरा, धारीदार तोरई, चप्पनकद्दू, टिंडा, कद्दू की फसल लेने के लिए समय से पूर्व सर्दी के मौसम में ही बोआई कर दी जाती है. लो टनल बोआई इन फसलों को सर्दी से बचाने का काम करती है.
इस के साथ ही साथ भीतर का वातावरण फसल के अनुकूल बना रहता है. ड्रिप सिस्टम से इस में सिंचाई की जाती है, जिस से पौधों को आवश्यकतानुसार पूरा पानी मिलता है. इस के साथ ही भाप के रूप में उड़ने वाले पानी को प्लास्टिक वायुमंडल में नहीं जाने देती, जिस के कारण टनल में भी नमी बनी रहती है. सर्दी के मौसम में लो टनल फसलें समय से पूर्व ही उपज देने लगती हैं. इस प्रकार बेमौसमी सब्जी से किसानों को दोगुनी आय मिलती है.
उत्पादन तकनीक
यह तकनीक राजस्थान के गरम शुष्क क्षेत्रों में कदूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिए उपयोगी है. जहां सर्दी के मौसम में रात का तापमान बहुत अधिक गिर जाता है, वहीं लो टनल तकनीक से फसल निम्न तापमान वाली से सुरक्षित रहती है. इस में जनवरी में बीजों की बोआई ड्रिपयुक्त नाली (ट्रेंच) में करते हैं. इस को प्लास्टिक की चादर से ढक देते हैं, जिस से कद्दूवर्गीय सब्जियों को उस के सामान्य समय से पहले उगाना संभव है. इस से सामान्य दशाओं की तुलना में फसल 30-40 दिन पहले ही तैयार हो जाती है.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin February Second 2023 sayısından alınmıştır.
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फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' के अधिकारी हुए सम्मानित
भारत में काम करने वाली संस्था 'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' से जुड़े 3 अधिकारियों संस्थापक ट्रस्टी सुनील वर्गीस, संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक और प्रोजैक्ट हैड सुनील पांडेय को गरीबी उन्मूलन और जीरो हंगर पर काम करने के लिए 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से नवाजा गया.
लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसानों का सम्मान
पहली बार बड़े लैवल पर 'फार्म एन फूड' पत्रिका द्वारा राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आए तकरीबन 200 किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से सम्मानित किया गया.
बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 7 अक्तूबर, 2024 को मूंगफली पर अनुसंधान एवं विकास को उत्कृष्टता प्रदान करने और किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.
अक्तूबर महीने में खेती के खास काम
यह महीना खेतीबारी के नजरिए य से बहुत खास होता है इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
किसान ने 50 मीट्रिक टन क्षमता का प्याज भंडारगृह बनाया
रकार की मंशा है कि खेती लाभ का धंधा बने. इस के लिए शासन द्वारा किसान हितैषी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
खेती के साथ गौपालन : आत्मनिर्भर बने किसान निर्मल
आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना का लाभ ले कर उन्नत नस्ल का गौपालन कर किसान एवं पशुपालक निर्मल कुमार पाटीदार एक समृद्ध पशुपालक बन गए हैं.
जीआई पंजीकरण से बढ़ाएं कृषि उत्पादों की अहमियत
हमारे देश में कृषि से जुड़ी फल, फूल और अनाज की ऐसी कई किस्में हैं, जो केवल क्षेत्र विशेष में ही उगाई जाती हैं. अगर इन किस्मों को उक्त क्षेत्र से इतर हट कर उगाने की कोशिश भी की गई, तो उन में वह क्वालिटी नहीं आ पाती है, जो उस क्षेत्र विशेष \" में उगाए जाने पर पाई जाती है.
पराली प्रबंधन पर्यावरण के लिए जरूरी
मौजूदा दौर में पराली प्रबंधन का मुद्दा खास है. पूरे देश में प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी तबाह कर रहा है और प्रदूषण का दायरा बढ़ाने में पराली का सब से ज्यादा जिम्मा रहता है. सवाल उठता है कि पराली के जंजाल से कैसे निबटा जाए ?