भारत में सहजन का उपयोग दक्षिण भारत में सांभर एवं सब्जी के रूप में किया जाता है. दक्षिणी भारत में सालभर फली देने वाले सहजन के पेड़ होते हैं, जबकि उत्तर भारत में ये साल में एक बार ही फली देते हैं.
सहजन में पोषक तत्त्व, जैसे प्रोटीन, आयरन, बीटा कैरोटीन, अमीनो अम्ल, कैल्शियम, पोटैशियम, मैगनीशियम, विटामिन 'ए', 'सी' और 'बी' कौंप्लैक्स की अधिकता होने के कारण इसे कुपोषण को रोकने एवं इस के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है.
सहजन अत्यंत गुणकारी और पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण सुपरफूड के नाम से भी जाना जाता है.
सहजन के पेड़ को कटिंग या बीच द्वारा बड़ी आसानी से घर के आसपास पार्क या बड़े गमलों में लगाया जा सकता है.
सहजन का प्रसंस्करण
सहजन की पत्तियों में आयरन, रेशा, विटामिन 'ए' एवं प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसलिए पत्ती को सुखाने के उपरांत पाउडर बना कर उस से फलों एवं सब्जियों का पौष्टिक जूस बनाना.
● इस की पत्तियों के पाउडर को सलाद में नमक व सलाद मसाले के साथ प्रयोग करना.
● फलियों का सांभर एवं सब्जी के रूप में प्रयोग करना.
● पत्तियों को जूस के रूप में प्रयोग करना.
● फूल की सब्जी.
● सहजन की फलियों का पाउडर.
● पत्तियों एवं फलियों के सत को निकाल कर विभिन्न फलों में मिला कर उत्पाद बनाना.
बीज
सहजन के बीज से पानी को शुद्ध कर के पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस के बीज को पाउडर के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है. पानी के साथ घुल कर यह एक प्रभावी प्राकृतिक क्लोरीफिकेशन एजेंट बन जाता है.
यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरियारहित करता है, बल्कि पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है. जीवविज्ञान के नजरिए से यह जल मानवीय उपयोग के लिए अधिक उपयुक्त माना जाता है.
पत्तियां
सहजन की पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, आयरन, पोटैशियम, कौप्लैक्स मैगनीशियम, विटामिन 'ए' 'सी' और 'बी कौप्लैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जो खून की कमी एवं कुपोषण को दूर करने में सहायक है. इस के अलावा सहजन के बीज के आटे को बच्चे के कुपोषण को दूर करने के लिए भी खिलाया जा सकता है. यह एक अच्छा हैल्थ सप्लीमैंट है.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin April Second 2023 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.