ऐसे में अगर किसान को धान की फसल से लागत के अनुरूप उत्पादन व लाभ नहीं मिलता है, तो भुखमरी की हालत से भी रूबरू होना पड़ता है.
धान की फसल के लिए कई विधियों का प्रयोग किया जाता है. इस में नर्सरी से धान के खेत में सीधी रोपाई, एसआरआई विधि, खेत में छिटकवां विधि से धान की बोआई व ड्रम सीडर से धान की बोआई आदि इन सभी विधियों से धान की खेती करने के अलगअलग फायदे हैं, लेकिन अगर किसान ड्रम सीडर से अपने खेत में धान की बोआई करे, तो उस से कई तरह के फायदे हैं. किसान इस तरह की बोआई से अधिक लाभ कमा सकता है.
ड्रम सीडर धान की बोआई में प्रयोग किया जाने वाला प्लास्टिक से बना एक मानवचलित यंत्र है. इस के प्रयोग से धान की बोआई में श्रम शक्ति, पैसा व समय की बचत भी की जा सकती है.
मशीन की बनावट व मूल्य
ड्रम सीडर यंत्र में 4-6 प्लास्टिक के डब्बे लगे होते हैं. इन डब्बों में क्रमश: 28 व 14 छेद पास व दूर में बने होते हैं. इस यंत्र के डब्बों की लंबाई 25 सैंटीमीटर और व्यास 18 सैंटीमीटर होती है. एक डब्बे में डेढ़ से दो किलोग्राम मात्रा में बीज रखा जाता है. इस यंत्र में किनारे पर 2 चक्के लगे होते हैं, जो खेत में बोआई के संचालन में उपयोगी होते हैं. इस में 2 हैंडल दोनों छोरों से होते हुए आपस में आ कर मिले होते हैं. इसे कोई भी एक व्यक्ति पकड़ कर बोआई का काम कर सकता है.
इस मशीन का बाजार मूल्य 7,500 रुपए से 10,000 रुपए तक है, जो किसी भी स्थानीय कृषि यंत्र विक्रेता से आसानी से खरीदा जा सकता है. इस यंत्र के लिए भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत किसानों को अनुदान भी उपलब्ध है.
ड्रम सीडर से धान की बोआई करने के जून माह के पहले सप्ताह से जुलाई माह के पहले सप्ताह तक का समय सब से उपयुक्त होता है. इस के लिए सब से पहले जिस खेत में धान की बोआई ड्रम सीडर से करनी हो, उस को खरपतवार नियंत्रण के लिए एक बार हैरो या रोटावेटर से जुताई कर मिट्टी भुरभुरी कर लेनी चाहिए. इस के बाद जिस दिन ड्रम सीडर से धान की बोआई करनी हो, उस खेत में पलेवा कर के उस का पानी बाहर निकाल देना उचित होता है.
बीज की तैयारी
Bu hikaye Farm and Food dergisinin June First 2023 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.