अश्वगंधा बहुत ही आसानी से उगने वाला बहुवर्षीय पौधा है, जिस की 2-3.5 इंच लंबी और 1-1.5 इंच चौड़ी नुकीली पत्तियां होती हैं. अश्वगंधा का प्रत्येक भाग (जड़, पत्ते, फल व बीज) औषधीय उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जाता है, परंतु सर्वाधिक उपयोग इस की जड़ों का ही है.
अश्वगंधा की अंर्तराष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग है, फिर भी किसानों में जागरूकता की कमी के कारण इस की खेती बहुत कम क्षेत्रफल में हो रही है, इसलिए अश्वगंधा की मांग और पूर्ति में भारी अंतर को देखते हुए बड़े पैमाने पर इस की खेती की बहुत जरूरत है.
अश्वगंधा का खेतीकरण
अश्वगंधा एक बहुवर्षीय पौधा है, जो निरंतर सिंचाई की व्यवस्था में कई वर्षों तक चल सकता है, परंतु इस की खेती 6-7 माह की फसल के रूप में की जाती है. शुष्क प्रदेशों में प्रायः इसे खरीफ की फसल के रूप में लगाया जाता है और जनवरीफरवरी माह में उखाड़ लिया जाता है. इस की बिजाई का सब से सही समय 15 अगस्त से 10 सितंबर तक का है. इस की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.
भूमि और जलवायु
यह शुष्क और समशीतोष्ण क्षेत्रों का पौधा है. इस की सही बढ़त के लिए शुष्क मौसम ज्यादा उपयुक्त होता है. अत्यधिक वर्षा वाले और ठंडे क्षेत्रों में इस की खेती नहीं की जा सकती है.
जड़दार फसल होने के कारण इस की खेती नरम और पोली मिट्टी में अच्छी प्रकार की जा सकती है, क्योंकि इस मिट्टी में इस की जड़ें ज्यादा गहराई में जा सकती हैं. इस प्रकार रेतीली दोमट और हलकी लाल मिट्टियां इस की खेती के लिए उपयुक्त हैं. खेत में समुचित जल निकास की व्यवस्था हो और पानी न रुके.
अत्यधिक उपजाऊ और भारी मिट्टी में पौधे बड़ेबड़े हो जाते है, परंतु जड़ों का उत्पादन अपेक्षाकृत कम ही मिलता है. इस तरह कम उपजाऊ, उचित जल निकासयुक्त बलुईदोमट और हलकी लाल, पर्याप्त जीवांशयुक्त मिट्टी इस की खेती के लिए उपयुक्त मानी गई हैं.
उन्नतशील प्रजातियां
अश्वगंधा की नागौरी अश्वगंधा, जवाहर अश्वगंधा 20, जवाहर अश्वगंधा 134, डब्ल्यूएस 90, डब्ल्यूएस 100 आदि प्रजातियां हैं, जिन में से नागौरी और जवाहर अश्वगंधा प्रजातियां अत्यधिक प्रचलित हैं.
खेत की तैयारी
Bu hikaye Farm and Food dergisinin August Second 2023 sayısından alınmıştır.
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