कुछ साल पहले तक सिद्धार्थ नगर जिले के काला नमक धान की खूबी को देखते हुए बाहर के व्यापारी फसल कटने से पहले जिले में डेरा जमाए बैठे रहते थे और किसानों से औनेपौने दामों पर खरीदारी कर काला नमक चावल को औनलाइन और औफलाइन लगभग 300 रुपए प्रति किलोग्राम तक बेचते थे, जबकि यही व्यापारी किसानों से 70 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम के मामूली रेट पर खरीद रहे थे.
'एक जिला एक उत्पाद' के तहत काला नमक धान को मिली पहचान
सिद्धार्थ नगर जिले में ऐसे हजारों किसान थे, जिन के काला नमक चावल की खूबी के हिसाब से किसानों को वाजिब रेट नहीं मिल पा रहे थे. उन्हीं में से एक उस्का बाजार निवासी श्रीधर पांडेय भी काला नमक चावल के उचित रेट न मिलने से परेशान थे. वे अकसर जिले के आला अधिकारियों की बैठकों में काला नमक धान को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए अपनी आवाज मुखर करते रहे. आखिर जिले के आला अधिकारियों ने किसान श्रीधर पांडेय की बात को गंभीरता से लिया और सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना 'एक जिला एक उत्पाद' के तहत काला नमक धान को शामिल करने की संस्तुति भेजी. सरकार ने जिले की विशेष पहचान काला नमक चावल को आखिरकार अपनी मुहर लगा दी.
किसान श्रीधर पांडेय की इस मांग के पूरा होने से जिले की माटी में उपजी काला नमक चावल की ख्याति दिनप्रतिदिन बढ़ती गई और क्योंकि 'एक जिला एक उत्पाद' में चयन होने के बाद अब इसे वैश्विक स्तर पर भी पहचान मिलने लगी.
किसान ने दिलाया आढ़तियों से छुटकारा
काला नमक धान के 'एक जिला एक उत्पाद' में शामिल कराए जाने के बाद अब किसान श्रीधर पांडेय जिले के काला नमक धान उत्पादक किसानों को वाजिब रेट दिलाने की मुहिम में जुट चुके थे. इस के लिए उन्होंने सब से पहले काला नमक धान की खेती करने वाले किसानों को एकजुट करना शुरू किया और इस के बाजार में वाजिब रेट और उस की खूबी को बताया, तो जनपद के किसानों ने श्रीधर पांडेय को अपना अगुआ बनाते हुए काला नमक चावल की वाजिब कीमत दिलाए जाने के लिए पहल करने का अनुरोध किया.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin August First 2023 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.