इन लतावर्गीय सब्जियों की खेती सीधे खेत में बीज को बो कर या नर्सरी में पौध तैयार कर खेत में रोप सकते हैं.
जनवरीफरवरी माह में पौधों के उचित जमाव के लिए प्लास्टिक ट्रे, प्लास्टिक लो टनल या पौलीबैग तकनीकी का प्रयोग कर लतावर्गीय सब्जियों की नर्सरी तैयार की जा सकती है.
इस विधि से प्लास्टिक शीट से लो टनल में भी पौध तैयार की जाती है. इस में बीज को बो कर पौध तैयार की जाती है. इस के बाद तैयार पौध को खेत में रोपा जाता है. इस विधि से लतावर्गीय सब्जियों की रोपाई से पौधों के मरने पर उस की जगह पर दूसरे पौध को रोप कर नुकसान से बचा जा सकता है.
इन सब्जियों के पौधों की तैयार करें नर्सरी
जनवरी से ले कर मार्च महीने तक बोआई की जाने वाली लतावर्गीय सब्जियों के पौधों की अगर अगेती नर्सरी तैयार की जाए, तो बाजार में उपज की आवक जल्दी होने से दाम अच्छा मिलता है और लंबे समय तक उपज भी प्राप्त की जा सकती है.
इस समय बोआई के लिए जिन लतावर्गीय सब्जियों का चयन करते हैं, उस में लौकी, करेला, खीरा, कद्दू, टिंडा, खरबूजा, तरबूज, तोरई जैसी किस्में प्रमुख हैं.
ऐसे तैयार करें पौध
सर्दी के मौसम में लतावर्गीय सब्जियों की खेती के लिए नर्सरी में पौध तैयार करने के लिए कई विधियों का प्रयोग किया जाता है, जिस में मुख्य रूप से प्लास्टिक ट्रे, प्लास्टिक लो टनल या पौलीपैक में पौधों को तैयार करना ज्यादा मुफीद होता है.
ऐसे तैयार करें प्लास्टिक लो टनल
प्लास्टिक लो टनल में सब्जियों के पौध तैयार करने के लिए सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था कर लें. इस के लिए ड्रिप इरिगेशन करना ज्यादा मुफीद होता है.
प्लास्टिक लो टनल बनाने के लिए जमीन से उठी हुई क्यारियां हवा की निकासी को नजर में रखते हुए उत्तर से दक्षिण दिशा में बनाई जानी चाहिए. इस के बाद क्यारियों के मध्य में एक ड्रिप लाइन बिछा दी जाती है. इन क्यारियों के ऊपर अर्धवृत्ताकार लोहे के 2 मिलीमीटर मोटे लोहे के तारों को मोड़ कर दोनों सिरों की दूरी 50 से 60 सैंटीमीटर और ऊंचाई 50 से 60 सैंटीमीटर रख कर सैट कर लेते हैं.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin January Second 2024 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.