हाल ही में एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने पानी के ऊपर आयोजित एक कार्यक्रम में यह दावा किया था कि उत्तर प्रदेश में तेजी से भूजल स्तर बढ़ा है, जो आने वाले दिनों में बुंदेलखंड के तरक्की की कहानी में अहम किरदार होगा.
यह दावा केवल उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री का ही नहीं है, बल्कि इसे उत्तर प्रदेश सरकार, भारत सरकार, नीति आयोग, जल शक्ति मंत्रालय सहित तमाम शोध संस्थाओं और देशीविदेशी मीडिया ने भी माना.
माइनर इरीगेशन डिपार्टमैंट अपने एक रिपोर्ट जारी की, जिस में बुंदेलखंड में भूजल स्तर के बढ़ने से बासमती चावल के रकबे में आज तक के इतिहास में न केवल सब से ज्यादा बढ़ोतरी हुई, बल्कि उत्पादन भी कई गुना बढ़ने से लोगों के पलायन में भी कमी आई.
अब सवाल यह उठता है कि जिस बुंदेलखंड में कभी दिल्ली से मालगाड़ी के जरीए पानी आता था. बांदा से चित्रकूट, मानिकपुर पाठा ट्रेन के टैंकर से कभी पानी जाता था, आज उसी चित्रकूट के पाठा, मऊ और राजापुर जैसे सूखे क्षेत्र में सरकारी धान खरीदारी के लिए सरकारी क्रय केंद्र स्थापित कर हजारों मीट्रिक टन बासमती चावल की खेती कैसे संभव हुई? क्योंकि देश में धान ही एक ऐसी फसल है, जिसे सब से ज्यादा पानी की जरूरत होती है.
कभी भीषण सूखे की मार झेलने वाले चित्रकूट के राजापुर में न्यूनतम समर्थन मूल्य में 4,000 मीट्रिक टन की खरीदारी की गई, जबकि बुंदेलखंड के 75,270 मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया. अकेले चित्रकूट मंडल के किसानों ने 41,076 मेट्रिक टन गेहूं उत्तर प्रदेश सरकार को बेचा, जबकि बुंदेलखंड मंडल का ही झांसी, जिस में 34,194 मीट्रिक टन गेहूं सरकार ने खरीदा. सूखे, प्यास, पलायन और बेरोजगारी के लिए विख्यात उत्तर प्रदेश सरकार को पिछले 5 वर्षों में करीब 700 करोड़ का धान बेचा है. आखिर इस बदलाव और बुंदेलखंड के पानीदार होने के पीछे किस का हाथ रहा, जो इतना बड़ा बदलाव आया. आइए, जानते हैं.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin April First 2024 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.