भारत अकेला एक ऐसा देश है, जो दुनिया का तकरीबन 45 फीसदी आम अकेले पैदा करता है. देश में आम की कुछ ऐसी उन्नत और खास किस्में भी हैं, जो अपने रंग, रूप और विशिष्ट स्वाद के लिए पूरी दुनिया में खास पहचान रखती हैं, इसीलिए इन किस्मों की मांग दुनिया के कई देशों में है.
अगर किसान अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं, तो उन के लिए आम की बागबानी एक सफल जरीया बन सकती है. बीते सालों में देश में आम की कुछ ऐसी उन्नत किस्में विकसित किए जाने में कामयाबी पाई गई है, जो परंपरागत किस्मों की अपेक्षा ऊंचाई में बहुत कम होने के साथ ही कम जगह भी घेरती हैं.
इस के अलावा इन का विशेष रंग, रूप, स्वाद और पोषक गुण भी इन्हें खास बनाता है. इस के चलते इन किस्मों का बाजार रेट भी बहुत अच्छा मिलता है. इन में से कुछ किस्में तो ऐसी हैं, जो किलो के रेट से न बिक कर पीस के हिसाब से बिकती हैं.
देश में आम की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीते सालों में सघन बागबानी के तहत कम ऊंचाई वाली बौनी और कम फैलाव वाली किस्मों की बागबानी को बढ़ावा दिया जा रहा है.
आम की पारंपरिक किस्मों की रोपाई जहां पौध से पौध और लाइन से लाइन की दूरी 10 मीटर से 12 मीटर तक रखी जाती रही है, वहीं नवीन किस्मों को लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 2.5 मीटर से ले कर 3 मीटर, 4 मीटर और 5 मीटर पर भी रोपाई की जाने लगी है.
कम दूरी पर की जाने वाली बागबानी को ही सघन बागबानी की श्रेणी में रखा जाता है. इस विधि से कम जगह में किसान आम के अधिक पौधों की रोपाई कर सकते हैं. इस से उन्हें कम जगह में अधिक उत्पादन प्राप्त हो जाता है.
कई तरह के लाभ
आम की बौनी और कम फैलाव वाली इन किस्मों की खेती से किसानों को कई तरह के लाभ मिल जाते हैं. इन किस्मों के बीच किसान दूसरी तरह की फसलों की खेती सहफसली के रूप में कर सकते हैं.
आम की बौनी किस्मों से पौध रोपण के तीसरे साल से ही व्यावसायिक उत्पादन लिया जा सकता है. इन में कीट और बीमारियों की रोकथाम के लिए आसानी से कुछ उपायों को अपना सकते हैं. पेड़ की लंबाई अधिक न होने से सभी फलों की बैगिंग कर सकते हैं. साथ ही, फलों की तुड़ाई आसानी से की जा सकती है.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin May First 2024 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.