प्रमुख रोग एवं उनका निदान
आर्द्रगलन यानी जड़ सड़न (डैंपिंग औफ सीडलिंग) : इस रोग में पहली अवस्था में बीज का भ्रूण भूमि के बाहर निकलने से पहले ही रोगग्रसित हो कर मर जाता है. दूसरी अवस्था में बीज अंकुरण के उपरांत छोटी उम्र के पौधे के तनों पर भूमि से सटे अथवा भूमि के अंदर वाले भाग पर संक्रमण हो जाता है, जिस से जलसिक्त धब्बे बन जाते हैं और पौधा संक्रमित स्थान से टूट कर गिर जाता है. पौधों में गलने के लक्षण भी दिखाई देते हैं. इस रोग का प्रकोप नम भूमि में ज्यादा होता है.
निदान : जैव कारक ट्राइकोडर्मा 4-5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर के बोना चाहिए अथवा रासायनिक बीजोपचार बावस्टीन (कार्बंडाजिम 50 फीसदी डब्ल्यूपी) 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बोआई से पहले करें.
मृदुरोमिल आसिता (डाउनी मिल्ड्यू) : इस रोग में पत्ती की ऊपरी सतह पर हलके पीले कोणीय धब्बे दिखाई देते हैं. बाद में पत्ती की निचली सतह पर फफूंद बैंगनी रंग की दिखाई देती है. फल आकार में छोटे हो जाते हैं. रोगी पौधों के पीले धब्बे शीघ्र ही लाल व भूरे रंग के हो जाते हैं.
निदान : रोगरोधी प्रजातियां उगानी चाहिए. खड़ी फसल पर मैंकोजेब (75 फीसदी डब्ल्यूपी) का 2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी के साथ घोल बना कर छिड़कने से इस रोग को कम कर सकते हैं. अगर यह रोग गंभीर अवस्था में हो, तो मेटैलेक्सिल + मैंकोजेब का 2.0 ग्राम प्रति लिटर पानी के साथ घोल कर स्प्रे करें. फसल पकने के बाद उस के बचे ठंठ यानी अवशेषों को जला देना चाहिए.
चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) : इस रोग का प्रकोप शुष्क मौसम में अधिक होता है. इस का मुख्य लक्षण पत्तियों, तनों और लताओं पर सफेद पाउडर जैसा फफूंद दिखाई देता है. यह रोग लगभग सभी कद्दूवर्गीय सब्जियों में पाया जाता है.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin July Second 2024 sayısından alınmıştır.
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फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' के अधिकारी हुए सम्मानित
भारत में काम करने वाली संस्था 'चाइल्ड हैल्प फाउंडेशन' से जुड़े 3 अधिकारियों संस्थापक ट्रस्टी सुनील वर्गीस, संस्थापक ट्रस्टी राजेंद्र पाठक और प्रोजैक्ट हैड सुनील पांडेय को गरीबी उन्मूलन और जीरो हंगर पर काम करने के लिए 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से नवाजा गया.
लखनऊ में हुआ उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसानों का सम्मान
पहली बार बड़े लैवल पर 'फार्म एन फूड' पत्रिका द्वारा राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' का आयोजन लखनऊ की संगीत नाटक अकादमी में 17 अक्तूबर, 2024 को किया गया, जिस में उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड से आए तकरीबन 200 किसान शामिल हुए और खेती में नवाचार और तकनीकी के जरीए बदलाव लाने वाले तकरीबन 40 किसानों को राज्य स्तरीय 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड' से सम्मानित किया गया.
बढ़ेगी मूंगफली की पैदावार
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने 7 अक्तूबर, 2024 को मूंगफली पर अनुसंधान एवं विकास को उत्कृष्टता प्रदान करने और किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, जूनागढ़ के साथ समझौतापत्र पर हस्ताक्षर किए.
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.
अक्तूबर महीने में खेती के खास काम
यह महीना खेतीबारी के नजरिए य से बहुत खास होता है इस महीने में जहां खरीफ की अधिकांश फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी के सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है.
किसान ने 50 मीट्रिक टन क्षमता का प्याज भंडारगृह बनाया
रकार की मंशा है कि खेती लाभ का धंधा बने. इस के लिए शासन द्वारा किसान हितैषी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं.
खेती के साथ गौपालन : आत्मनिर्भर बने किसान निर्मल
आचार्य विद्यासागर गौ संवर्धन योजना का लाभ ले कर उन्नत नस्ल का गौपालन कर किसान एवं पशुपालक निर्मल कुमार पाटीदार एक समृद्ध पशुपालक बन गए हैं.
जीआई पंजीकरण से बढ़ाएं कृषि उत्पादों की अहमियत
हमारे देश में कृषि से जुड़ी फल, फूल और अनाज की ऐसी कई किस्में हैं, जो केवल क्षेत्र विशेष में ही उगाई जाती हैं. अगर इन किस्मों को उक्त क्षेत्र से इतर हट कर उगाने की कोशिश भी की गई, तो उन में वह क्वालिटी नहीं आ पाती है, जो उस क्षेत्र विशेष \" में उगाए जाने पर पाई जाती है.
पराली प्रबंधन पर्यावरण के लिए जरूरी
मौजूदा दौर में पराली प्रबंधन का मुद्दा खास है. पूरे देश में प्रदूषण का जहर लोगों की जिंदगी तबाह कर रहा है और प्रदूषण का दायरा बढ़ाने में पराली का सब से ज्यादा जिम्मा रहता है. सवाल उठता है कि पराली के जंजाल से कैसे निबटा जाए ?