पशुओं के नवजात बच्चों के जन्म से ले कर युवावस्था तक अच्छी प्रबंधन व्यवस्था, पशुओं और किसानों दोनों के लिए एक सफल और लाभदायक काम है. नवजात पशु के अच्छे स्वास्थ्य के लिए खीस प्रबंधन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है.
ब्यांत के बाद गाय जो पहला पीला और गाढ़ा दूध देती है, उसे 'कोलोस्ट्रम' यानी 'खीस' कहा जाता है. नवजात बच्चे के लिए यह दूध बहुत ही गुणकारी है, क्योंकि यह उन्हें संक्रामक रोगों से बचाता है. यह पोषक तत्त्वों और एंटीबॉडी से भरपूर होता है. खीस में मौजूद एंटीबॉडीज नवजात बच्चे को उस की शुरुआती सुरक्षा प्रदान करते हैं.
लगभग सौ साल पहले एक शोध से यह पता चला था कि जिन नवजात बछड़ों को दूध पिलाया गया था, उन में से कई की मृत्यु दस्त लगने के कारण हो गई थी, जबकि जिन बछड़ों को जन्म के बाद ही खीस पिलाया गया, वे स्वस्थ रहे, इसलिए यह माना गया कि खीस में कुछ महत्त्वपूर्ण तत्त्व होते हैं, जो नवजात पशु को प्रतिरक्षा (बीमारियों से बचाव ) प्रदान करते हैं और ब्यांत के बाद मृत्यु दर को काफी कम करते हैं.
जन्म के तुरंत बाद नवजात बछड़े में बीमारी से सुरक्षा का अभाव होता है, क्योंकि एंटीबॉडी गाय की नाल से हो कर भ्रूण के संचार तंत्र तक नहीं पहुंच पाती है, इसलिए उन्हें संक्रामक रोग होने का खतरा हमेशा बना रहता है. हालांकि नवजात बछड़े में एंटीबॉडी पैदा करने की क्षमता होती है, लेकिन यह क्षमता बहुत कम होती है.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin July First 2024 sayısından alınmıştır.
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अगस्त महीने के खेती के काम
अगस्त के महीने में बरसाती मौसम का आखिरी दौर चल रहा होता है और देश के अनेक हिस्सों में धान की खेती बरसात के भरोसे ही की जाती है. बरसात के दिनों में फसल में कीट, रोगों व खरपतवारों का भी अधिक प्रकोप होता है, इसलिए समय रहते उन की रोकथाम भी जरूरी है.
बागबानी के लिए आम की विदेशी रंगीन किस्में
आम उत्पादन के मामले में भारत दुनियाभर में पहले स्थान पर है. इस की एक खास वजह यह है कि भारतीय आम अपने आ स्वाद, रंग, बनावट और गुणवत्ता के मामले में किसी को भी अपना मुरीद बना लेता है.
हेलदी की उन्नत खेती बढाए आमदनी
हलदी का प्रयोग न केवल मसाले के रूप में खाने के लिए होता है, बल्कि सौंदर्य प्रसाधनों और औषधियों के लिए भी होता है. हलदी को एक बेहतर एंटीबायोटिक माना गया है, जो शरीर में रोग से लड़ने की कूवत को बढ़ाने में मदद करता है.
पोपलर उगाएं ज्यादा कमाएं
पोपलर कम समय में तेजी से चढ़ने वाला पेड़ है. इस की अच्छी नस्लें तकरीबन 5 से पा 8 साल में तैयार हो जाती हैं. पोपलर की पौध एक साल में तकरीबन 3 से 5 मीटर तक ऊंची हो जाती है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के मैदानी इलाकों में इन को देखा जा सकता है.
टिंगरी मशरूम से बनाएं स्वादिष्ठ अचार
हमारे यहां की रसोई में अचार अपना एक अलग ही स्थान रखता है. यह हमारे भोजन को और भी लजीज व स्वादिष्ठ बनाता है. भारतीय रसोई में ह मशरूम भी अहम स्थान रखते हैं. मशरूम का अचार इसे और भी अधिक लजीज और रुचिकर बना देता है. इस का स्वाद और खुशबू हर किसी को मोहित कर देती है.
तालाबों में जल संरक्षण के साथ हों मखाने की खेती
दुनिया का 90 फीसदी मखाना भारत में होता है और अकेले बिहार में इस का उत्पादन 85 फीसदी से अधिक होता है. इस के अलावा देश के उत्तरपूर्वी इलाकों में भी इस की खेती आसानी से की जा सकती है. यहां पर जो तालाब हैं, उन में पानी भर कर मखाने की खेती को बढ़ावा दिया जा सकता है, जिस से किसानों को फायदा होगा. साथ ही, जल संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सकेगा.
पालक की उन्नत खेती
पत्तेदार सब्जियों में सर्वाधिक खेती पालक की होती है. यह एक ऐसी फसल है, जो कम समय और कम लागत में अच्छा मुनाफा देती है. पालक की बोआई एक बार करने के बाद उस की 5-6 बार कटाई संभव है. इस की फसल में कीट व बीमारियों का प्रकोप कम पाया जाता है.
कम खेती में कैसे करें अधिक कमाई
अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए किसानों को अपनी मानसिकता में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए बदलाव लाना होगा. खेती के अलावा किसानों को उद्यानिक फसलों की ओर भी ध्यान देना होगा.
खेत हो रहे बांझ इस का असल जिम्मेदार कौन?
अपने देश में पिछले 5 सालों में विभिन्न कारणों से किसान लगातार आंदोलन कर रहे हैं, पर आज हम न तो आंदोलनों की बात करेंगे और न ही किसी सरकार पर कोई आरोप लगाएंगे. हम यहां भारतीय खेती की वर्तमान दशा व दिशा का एक निष्पक्ष आकलन करने की कोशिश करेंगे.
बजट 2024 : किसानों के साथ एक बार फिर 'छलावा'
भारत की केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट 2024-25 खासतौर पर 2 माने में अभूतपूर्व रहा. पहला तो यह कि देश के इतिहास में पहली बार किसी वित्त मंत्री ने 7वीं बार बजट पेश किया है. हालांकि इस रिकौर्ड के बनने से देश का क्या भला होने वाला है, पर इकोनॉमी पर क्या प्रभाव पड़ना है, यह अभी भी शोधकर्ताओं के शोध का विषय है. दूसरा यह कि कृषि की वर्तमान आवश्यकता के मद्देनजर इस बजट में देश की खेती और किसानों के लिए ऐतिहासिक रूप से अपर्याप्त न्यूनतम राशि का प्रावधान किया गया है.