अनेक किसान कीटों का हमला रोकने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का जम कर इस्तेमाल करते हैं, जिस के नतीजे कई बार अच्छे नहीं होते, क्योंकि रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करने से खेत की मिट्टी तो खराब होती ही है, साथ ही फसल में भी कुछ न कुछ जहरीलापन जरूर आ जाता है.
इस से बचने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने फैरोमन ट्रैप नाम की एक ऐसी तकनीक ईजाद की है, जिस में और्गेनिक पदार्थ का इस्तेमाल होता है, जो खेती के लिए भी सुरक्षित है.
यह फैरोमौन ट्रैप ल्यूर और ट्रैप (गंधपाश) 2 चीजों को मिला कर बना होता है, इसलिए इसे गंधपाश के नाम से भी जाना जाता है.
यह एक तरह का साधारण सा बना हुआ उपकरण है. इस में कीप के आकार के मुख्य भाग पर लगे ढक्कन पर ल्यूर लगाया जाता है. इस में ल्यूर का इस्तेमाल नर पतंगों को मैथुन क्रिया के लिए अपनी तरफ खींचता है, जिस से ट्रैप में फंस कर कीट मर जाते हैं.
गंध (फैरोमौन) क्या है
देश की अनेक संस्थाएं इस पर काम कर रही हैं. इस के द्वारा खेतों में कई कीटों की सघनता का आकलन कर के और उन को बड़े पैमाने पर पकड़ कर खत्म करने के लिए फैरोमौन तकनीक का विकास किया गया है. इस में से कुछ खास कीड़े जिन के लिए फैरोमौन मौजूद हैं, निम्न हैं:
स्पोडोप्टेरा लिट्यूरा : यह कीट टोबैको कैटरपिलर के नाम से जाना जाता है. इस का हमला भिंडी, पत्तागोभी, तंबाकू, सरसों, फूलगोभी वगैरह फसलों पर होता है. इस कीट का फैरोमौन ल्यूर बाजार में स्पोडोप्टेरा लिट्यूरा के नाम से मिलता है.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin August First 2024 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Farm and Food dergisinin August First 2024 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
नई तकनीक से किसानों की आमदनी बढ़ा रही हैं डा. पूजा गौड़
डा. पूजा गौड़ शिक्षा से स्वावलंबन और स्वावलंबन से माली समृद्धि के लिए जौनसार इलाके के किसानों और युवाओं को खेतीबारी के प्रति जागरूक कर रही हैं. हाल ही में उन्हें उन के किए जा रहे प्रयासों के लिए लखनऊ में दिल्ली प्रैस द्वारा आयोजित 'फार्म एन फूड कृषि सम्मान अवार्ड 2024' से सम्मानित किया गया.
पशुओं में गर्भाधान
गोवंशीय पशुओं का बारबार गरमी में आना और स्वस्थ व प्रजनन योग्य नर पशु से गर्भाधान या फिर कृत्रिम गर्भाधान सही समय पर कराने पर भी मादा पशु द्वारा गर्भधारण न करने की अवस्था को 'रिपीट ब्रीडिंग' कहते हैं.
पशुओं के लिए बरसीम एक पौष्टिक दलहनी चारा
बरसीम हरे चारे की एक आदर्श फसल है. यह खेत को अधिक उपजाऊ बनाती है. इसे भूसे के साथ मिला कर खिलाने से पशु के निर्वाहक एवं उत्पादन दोनों प्रकार के आहारों में प्रयोग किया जा सकता है.
औषधीय व खुशबूदार पौधों की जैविक खेती
शुरू से ही इनसान दूसरे जीवों की तरह पौधों का इस्तेमाल खाने व औषधि के रूप में करता चला आ रहा है. आज भी ज्यादातर औषधियां जंगलों से उन के प्राकृतिक उत्पादन क्षेत्र से ही लाई जा रही हैं. इस की एक मुख्य वजह तो उनका आसानी से मिलना है. वहीं दूसरी वजह यह है कि जंगल के प्राकृतिक वातावरण में उगने की वजह से इन पौधों की क्वालिटी अच्छी और गुणवत्ता वाली होती है.
दुधारू पशुओं की प्रमुख बीमारियां और उन का उपचार
पशुपालकों को पशुओं की प्रमुख बीमारियों के बारे में जानना बेहद जरूरी है, ताकि उचित समय पर सही कदम उठा कर अपना माली नुकसान होने से बचा जा सके. कुछ बीमारियां तो एक पशु से दूसरे पशु को लग जाती हैं, इसलिए सावधान रहने की जरूरत है.
एक ऐसा गांव जहां हर घर में हैं दुधारू पशु
मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित विश्वविद्यालय की घाटी पर बसा गांव रैयतवारी भैंसपालन और दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है. दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कलक्टर संदीप जीआर के मार्गदर्शन में संचालित मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित महिला समूहों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
रबी की सब्जियों में जैविक कीट प्रबंधन
रबी की सब्जियों में मुख्य रूप से वर्गीय में फूलगोभी, पत्तागोभी, सोलेनेसीवर्गीय में गांठगोभी, टमाटर, बैगन, मिर्च, आलू, पत्तावर्गीय में धनिया, मेथी, सोया, पालक, जड़वर्गीय में मूली, गाजर, शलजम, चुकंदर एवं मसाला में लहसुन, प्याज आदि की खेती की जाती है.
कृषि विविधीकरण : आमदनी का मजबूत जरीया
किसानों को खेती में विविधीकरण अपनाना चाहिए, जिससे कि वे टिकाऊ खेती, औद्यानिकीकरण, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय के साथ ही मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन सहित अन्य लाभदायी उद्यम को करते हुए अपने परिवार की आय को बढ़ाने के साथसाथ स्वरोजगार भी कर सकें.
जनवरी में खेती के काम
जनवरी में गेहूं के खेतों पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान तकरीबन 3 हफ्ते के अंतराल पर गेहूं के खेतों की सिंचाई करते रहें. गेहूं के खेतों में अगर खरपतवार या दूसरे फालतू पौधे पनपते नजर आएं, तो उन्हें फौरन उखाड़ दें.
जल संसाधनों के अधिक दोहन को रोकना जरूरी
बायोसैंसर जैसी आधुनिक तकनीक का जल संसाधनों में बेहतर उपयोग किया जा सकता है. मक्का की फसल धान वाले खेतों में पानी बचाने के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है.