देश में खाद्यान्न उत्पादन के घटतेबढ़ते सच्चेझूठे आंकड़ों से परे असल सच यही है कि वर्तमान में खेती घाटे का सौदा बन गई है. देश का किसान दिनोंदिन बढ़ती कृषि लागत, उत्पादन की मात्रा एवं गुणवत्ता की अनिश्चितता और उत्पादन का वाजिब लाभकारी मूल्य न मिल पाने के कारण बेहद परेशान है. आलम यह है कि पिछले 2 सालों में 2 करोड़ से ज्यादा किसानों ने खेती करना छोड़ दिया है.
दूसरी ओर रासायनिक खाद, जहरीली दवाओं और जीएम बीजों ने कृषि और किसानों को पर्यावरण, धरती एवं इनसानियत के विरुद्ध खड़ा कर दिया है. साथ ही, पर्यावरण को ही प्रदूषित नहीं किया, बल्कि इनसान की सेहत के लिए भी गंभीर खतरा पैदा कर दिया है. कीटनाशकों की अनेक नई किस्में किसानों के लिए बरबादी ले कर आ रही हैं.
महंगी कृषि तकनीकें
इन दिनों सरकार ड्रोन उड़ा कर खेती करने, पौलीहाउस, ग्रीनहाउस और हाइड्रोपोनिक्स तकनीकी को बढ़ावा दे रही है और इस के लिए लाखों करोड़ों की सब्सिडी भी देती है.
सब्सिडी का लालच दे कर इन्हें बेचने वाली कंपनियों के एजेंट भोलेभाले किसानों को हर साल लाखों की कमाई का सब्जबाग दिखा कर अपने जाल में फंसाते हैं और फिर शुरू होता है सब्सिडी और बैंक लोन का खेल, जिस में हर मोड़ पर घूस का चढ़ावा दे कर और लागत की आधी से भी कम कीमत की घटिया दर्जे की चीजें दी जाती हैं, क्योंकि किसान इन चीजों के तकनीकी मापदंडों एवं गुणवत्ता को नहीं समझ पाते, इसलिए बिना जोखिम ज्यादा से ज्यादा फायदा कमाने के लिए किसान सहज उपलब्ध सौफ्ट टारगेट हैं.
खेती में निरंतर घाटे से परेशान किसान जिस फसल में मुनाफे की बात सुनता है, उस की ओर ठीक उसी तरह दौड़ पड़ता है, जैसे दीपक की लौ की ओर पतंगा दौड़ता है, और अंत में किसान का हाल भी पतंगे जैसा होता है.
उदाहरण के लिए, पौलीहाउस के लिए अगर बात करें, तो एजेंट के जरीए 20 रुपए लाख की सब्सिडी का लालच दिखा कर भोलेभाले किसानों को पटा कर बैंक से लोन, अनुदान दिलाने की कमीशन सैटिंग कर घटिया चीजों से पौलीहाउस खड़ा कर के तैयार थमा दिए जाते हैं.
Bu hikaye Farm and Food dergisinin August First 2024 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.