सदियों से खेतीकिसानी के काम को पुरुषों का ही काम माना जाता रहा है, जबकि खेतों में काम करते हुए लोगों को अगर देखें, तो उस में सब से ज्यादा स तादाद महिलाओं की ही होती है. खरीफ सीजन में खेतों में काम करने वाले किसानों की तादाद में और भी इजाफा हो जाता है, क्योंकि खरीफ सीजन में धान रोपाई से ले कर कटाई, हार्वेस्टिंग और भंडारण तक में महिलाएं ही भूमिका निभाती हैं. फिर भी घर की इन महिलाओं को किसान होने का दर्जा इसलिए नहीं मिल पाता है, क्योंकि जमीन का मालिकाना हक घर के पुरुष सदस्य के पास ही होता है.
हम किसानों के लिए संबोधन किए जाने वाले सरकारी या गैरसरकारी लैवल पर भाषाई स्तर पर नजर डालें, तो किसान के रूप में अन्नदाताओं के लिए सिर्फ 'किसान भाई' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि खेती में अहम भूमिका निभाने वाली महिलाओं को आज तक 'किसान बहनों' के नाम से संबोधित करते नहीं देखा गया. महिला किसानों के लिए यह असमानता मीडिया लैवल पर भी दिखाई देता रहा है.
खेती के करती हैं सभी काम, फिर भी नहीं मिलता दाम
महिलाएं घरपरिवार की देखभाल के साथसाथ पशुपालन, दूध निकालना, रोपाई, निराई, गुड़ाई, हार्वेस्टिंग और भंडारण तक का काम संभालती हैं, लेकिन जब कृषि उपज को बेचने की बात आती है, तो उस का निर्णय किसान कहलाने वाला घर का पुरुष सदस्य लेता है और उपज को बेच कर की हुई कमाई को भी अपने पास ही रखता है.
महिला किसानों के हक पर काम करने वाली माधुरी का कहना है कि जब महिलाएं दिनभर धान के पानी से भरे खेत में खड़ी हो कर पुरुषों की तरह ही निंदाईगुड़ाई कर सकती हैं, तो फिर मंडी में उसी फसल को बेचने के लिए उन्हें जाने क्यों नहीं दिया जाता? बीज खरीदने, फसल बेचने, उस फसल से प्राप्त रकम के उपयोग में उस की भूमिका कहां चली जाती है, जबकि वह घर में सब से पहले उठने और सब से बाद में सोने वाली इकाई होती है?
किसान आंदोलन में खेती का पूरा काम महिलाओं के हवाले
Bu hikaye Farm and Food dergisinin December 2024 sayısından alınmıştır.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
किसान करेंगे उन्नत कृषि यंत्रों का उपयोग
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के फार्म मशीनरी विभाग में कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा संचालित कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र में श्रम विज्ञान एवं सुरक्षा पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना द्वारा फलासिया की ग्राम पंचायत पानरवा में कृषि कार्यों में सुरक्षा पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया.
फार्म एन फूड की ओर से सम्मान पाने वाले किसानों को फ्रेम कराने लायक यादगार भेंट
उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड
खाद्य तेल के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम
केंद्र सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट ऐक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की.