वास्तु अनुरूप गणेश जी का स्वरूप
Sadhana Path|October 2023
वास्तु एवं फेंग शुई की बढ़ती लोकप्रियता ने देवी-देवताओं की मूर्तियों एवं चित्रों को पूजा घर के साथ-साथ ड्रॉइंग रूम, गेस्ट रूम और प्रवेश द्वार का भी हिस्सा बना दिया है। विशेषकर गणेश जी की प्रतिमा को लोग शुभ एवं सुरव-सौभाग्य के साथ जोड़कर देखने लगे हैं। वास्तु अनुसार भगवान गणेश की प्रतिमा किस प्रकार आपके जीवन में सुख-समृद्धि ला सकती है, जानें इस लेख से।
अनुज
वास्तु अनुरूप गणेश जी का स्वरूप

भारतीय संस्कृति में पौराणिक कथाओं के माध्यम से जीवन एवं वातावरण से जुड़ी विभिन्न ऊर्जाओं का चित्रण देवताओं की आकृतियों के रूप में हुआ है।

इनमें दो विशिष्ट आकृति हैं- भगवान गणेश एवं श्री हनुमान। गणेश ऊर्जा के अग्र भाग का एवं श्री हनुमान ऊर्जा के अंतिम छोर का प्रतिनिधित्व करते हैं। गणेश जी को ऐसा देव माना गया है जो सभी कल्पों में उत्पन्न होते रहते हैं। पुराणों में उनके जन्म की अनेक कथाएं हैं। कहते हैं माता पार्वती ने गणेश जी को द्वार पर रक्षा के लिए स्वयं अपनी शक्ति से रचा था।

परंतु श्री गणेश कोई द्वारपाल नहीं हैं। द्वार की गरिमा में रक्षा, स्वागत एवं प्रवेश के विभिन्न आयाम भी सम्मिलित हैं। इस कारण श्री गणेश को द्वार के दाएं या बाएं नहीं द्वार के ऊपर स्थापित किया जाता है। गणेश उस ऊर्जा के संवाहक हैं जो हमारे प्रवेश द्वार पर होती है। वास्तु व फेंग शुई के अनुसार जो स्थान मुंह का शरीर में है वही प्रवेश (मुख्य) द्वार का स्थान किसी भी भवन में होता है। जैसे मुंह के द्वारा ही शरीर भोजन-पानी ग्रहण कर अपना निर्माण करता है, वैसे ही मुख्य द्वार से ऊर्जा प्रवेश करती है और भवन से जुड़ी सभी अभिलाषाओं की पूर्ति करती है। वास्तु में गणेश व फेंग शुई में ड्रैगन की द्वार पर संकेतात्मक उपस्थिति ऊर्जा का विशाल भंडारण इंगित करती है। गणेश के विभिन्न अवतारों में प्रमुख आठ अवतारों द्वारा हम इस आकृति (ऊर्जा) को और विशिष्ट रूप से समझ पाएंगे।

वक्रतुण्ड

Bu hikaye Sadhana Path dergisinin October 2023 sayısından alınmıştır.

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