सौंफ
सौंफ रसोई के मसालों में तो काम आती ही है इसके साथ ही इसका उपयोग घरेलू चिकित्सा के रूप में भी किया जाता है।
गुण
सौंफ रुचिकर हल्की और अग्निप्रदीपक होती है। इसके सेवन से अन्नपाचन सही ढंग से होता है। शायद इसीलिए भोजन के पश्चात् मुखशुद्धि के लिए सौंफ खाने का प्रचलन है। अन्नपान के बाद इसके सेवन से मुख तो शुद्ध होता ही है, साथ ही इसको चबा-चबा कर खाने से जो रस निकलता है, वह खाए हुए आहार को पचाता है। यह वीर्यवर्द्धक, बलदायक व नेत्रों के लिए हितकारी होती है। वायु, वमन, अतिसार को शमन करने वाली होती है। सौंफ के सुगंधित होने के कारण दस्तावर औषधियों को सुगंधित करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।
उपयोग
सौंफ रसोई का सुपरिचित पदार्थ है। यह साग-सब्जी के मसालों का एक अनिवार्य अंग है। इसके बिना साग-सब्जी में कोई स्वाद नहीं आ सकता, इसके अतिरिक्त अचार बनाने में भी इसका उपयोग होता है। इसका औषधि के रूप में घरेलू दवा की तरह भी प्रयोग किया जाता है।
घरेलू इलाज
Bu hikaye Sadhana Path dergisinin December 2023 sayısından alınmıştır.
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तुलसी से दूर करें वास्तुदोष
हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा हर घर-आंगन की शोभा है। तुलसी सिर्फ हमारे घर की शोभा ही नहीं बल्कि शुभ फलदायी भी है। कैसे, जानें इस लेख से।
क्यों हुआ तुलसी का विवाह?
कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव वैसे तो पूरे भारत में मनाया जाता है, किंतु उत्तर भारत में इसका कुछ ज्यादा ही महत्त्व है। नवमी, दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना बड़ा ही शुभ माना जाता है।
बड़ी अनोखी है कार्तिक स्नान की महिमा
हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बारह पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व सर्वाधिक है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसका नाम हैं सत्यः नानक
सिरवों के प्रथम गुरु थे नानक | अंधविश्वास एवं आडंबरों के विरोधी गुरुनानक का प्रकाश उत्सव अर्थात् उनका जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु नानक का मानना था कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। संपूर्ण विश्व उन्हें सांप्रदायिक एकता, शांति एवं सद्भाव के लिए स्मरण करता है।
सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन
भगवान सूर्य को समर्पित है आस्था का महापर्व छठ । ऐसी मान्यता है कि इस पर्व को करने से सूर्य देवता मनोकामना पूर्ण करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है, जिस कारण इस पर्व का नाम छठ पड़ा। जानें इस लेख से छठ पर्व की महत्ता।
एक समाज, एक निष्ठा एवं श्रद्धा की छटा का पर्व 'छठ'
छठ की दिनोंदिन बढ़ती आस्था और लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि कुछ तो विशेष है इस पर्व में जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। पूजा के दौरान अपने लोकगीतों को गाते हुए, जमीन से जुड़ी परम्पराओं को निभाते हुए हर वर्ग भेद मिट जाता है। सबका एक साथ आकर बिना किसी भेदभाव के ईश्वर का ध्यान करना... यही तो भारतीय संस्कृति है, और इसीलिए छठ है भारतीय संस्कृति का प्रतीक।
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