
प्राचीनकाल से ही हिन्दू धर्म में रंगोली को शुभ माना जाता है। विभिन्न रंगों और फूलों से बनाई गई रंगोली आपके घर और आसपास के वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है, जिससे मन प्रसन्न और तनावमुक्त रहता है।
ये रंग ही तो त्योहारों में जान डालते हैं, चाहे वह होली हो, गणेश चतुर्थी हो, दुर्गा अष्टमी हो या फिर दिवाली ही क्यों न हो। रोशनी का पर्व दिवाली भी रंगों के बिना अधूरा लगता है। रंगों के जरिए हम अपनी खुशियों और भावों को व्यक्त करते हैं।
रंगोली को अल्पना या चौक पूरना भी कहा जाता है। कई स्थानों पर रंगोली बनाने के लिए विभिन्न डिजाइन के साधन भी मिलने लगे हैं, जिसमें चावल का आटा भर कर जमीन पर चलाना मात्र होता है और सुन्दर आकृतियां उभर आती हैं। यह एक प्रकार से स्त्रियों द्वारा अपनी रचनात्मकता दिखाने का अवसर भी होता है। ग्रामीण परिवेश अभी भी आधुनिकता से अछूता है। वहां घर के बाहरी दीवारों पर, आंगन में, मुख्य द्वार के बाहर विभिन्न रंगों की अद्भुत रंगोली देखने को मिल जाएगी। यह प्रसन्नता की बात है कि आधुनिक और पढ़ी-लिखी स्त्रियों में भी रंगोली या अल्पना के प्रति गहरा आकर्षण दिखाई देता है।
Bu hikaye Sadhana Path dergisinin October 2024 sayısından alınmıştır.
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