समय का पहिया कहां थमता है। गुजरते वक़्त के साथ कहीं बस्तियां वीरान हो जाती हैं तो कहीं वीराने बस जाते हैं। पांच सौ साल से बस ज़रासा पहले का वाक़या है। अयोध्या नगरी से कुछ दूर अवध के एक छोटे से हिस्से में व्यापे घनघोर जंगल में एक दिन कुछ हलचल होती है, एक बस्ती के बीज पड़ते हैं; उगना शुरू होती है किसी नन्हे पौधे की तरह और समय के साथ भरे-पूरे वृक्ष में बदल जाती है। सोलहवीं सदी के छठे दशक तक का बियाबान आज अकबरपुर के रूप में आबाद है। अकबरपुर अपने बसने की कहानी अपने नाम से बयान करता है। कहते हैं, सन् 1566 में सम्राट अकबर लाव-लश्कर के साथ यहां से गुजरे। कुछ दिन विश्राम किया तो ख़याल आया कि क्यों न यहां एक बस्ती बसाई जाए। सम्राट ने आज के तहसील तिराहे वाली जिस जगह पर आराम फ़रमाया, वहां नमाज़ के लिए एक मस्ज़िद की आधारशिला रखी। बादशाह के नाम पर बस्ती बनी अकबरपुर और मस्जिद का नाम आमजन ने दिया किले वाली मस्जिद।
अकबरपुर : जैसा नाम वैसा मिज़ाज
अकबरपुर बसा तो इसके इर्दगिर्द चालीस-पचास किलोमीटर के दायरे में बाद के दिनों में मुगलिया निशान गहराते चले गए। पांच सदियों में बहुत कुछ बना बिगड़ा-बसा। मुग़ल काल का असर और उसके पहले के अवध का गौरवशाली ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अतीत इसे एक मिलाजुला सांस्कृतिक परिधान देते हैं। जिस गंगा-जमुनी तहज़ीब की हम बात करते हैं, वह देश में और कहीं कितनी जीवित है, पता नहीं, पर यहां के लोगों के व्यवहार में इसे कुछ हद तक देखा जा सकता है। क़स्बाई आबादी में हर सुबह अजान का स्वर, तो गांवों में हर कहीं हिंदुओं का राम-राम, जै सीताराम सुनाई देता है। दुआ सलाम में मुसलमानों के मुंह से भी अक्सर राम-राम निकल ही आता है ऐसा नहीं है कि सामाजिक समरसता के लिए कोई आंदोलन चला हो, बस सदियों में विकसित हुई आपसदारी का प्रतिफल है।
Bu hikaye Aha Zindagi dergisinin November 2024 sayısından alınmıştır.
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कथाएं चार, सबक़ अपार
कथाएं केवल मनोरंजन नहीं करतीं, वे ऐसी मूल्यवान सीखें भी देती हैं जो न सिर्फ़ मन, बल्कि पूरा जीवन बदल देने का माद्दा रखती हैं - बशर्ते उन सीखों को आत्मसात किया जाए!
मनोरम तिर्रेमनोरमा
अपने प्राकृतिक स्वरूप, ऋषि-मुनियों के आश्रम, सरोवर और सुप्रसिद्ध मेले को लेकर चर्चित गोंडा ज़िले के तीर्थस्थल तिर्रेमनोरमा की बात ही निराली है।
चाकरी नहीं उत्तम है खेती...
राजेंद्र सिंह के घर पर किसी ने खेती नहीं की। लेकिन रेलवे की नौकरी करते हुए ऐसी धुन लगी कि असरावद बुजुर्ग में हर कोई उन्हें रेलवे वाले वीरजी, जैविक खेती वाले वीरजी, सोलर वाले वीरजी के नाम से जानता है। उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी।
उसी से ग़म उसी से दम
जीवन में हमारे साथ क्या होता है उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि हम उस पर कैसी प्रतिक्रिया करते हैं। इसी पर निर्भर करता है कि हमें ग़म मिलेगा या दम। यह बात जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना पर लागू होती है।
एक कप ज़िंदगी के नाम
सिडनी का 'द गैप' नामक इलाक़ा सुसाइड पॉइंट के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस स्थान से जुड़ी एक कहानी ऐसी है, जिसने कई जिंदगियां बचाईं। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जिसने अपनी साधारण-सी एक पहल से अंधेरे में डूबे हुए लोगों को एक नई उम्मीद की किरण से रूबरू कराया।
कौन हो तुम सप्तपर्णी?
प्रकृति की एक अनोखी देन है सप्तपर्णी। इसके सात पर्ण मानो किसी अदृश्य शक्ति के सात स्वरूपों का प्रतीक हैं और एक पुष्प के साथ मिलकर अष्टदल कमल की भांति हो जाते हैं। हर रात खिलने वाले इसके छोटे-छोटे फूल और उनकी सुगंध किसी सुवासित मधुर गीत तरह मन को आनंद विभोर कर देती है। सप्तपर्णी का वृक्ष न केवल प्रकृति के निकट लाता है, बल्कि उसके रहस्यमय सौंदर्य की अनुभूति भी कराता है।
धम्मक-धम्मक आत्ता हाथी...
बाल गीतों में दादा कहकर संबोधित किया जाने वाला हाथी सचमुच इतना शक्तिशाली होता है कि बाघ और बब्बर शेर तक उससे घबराते हैं। बावजूद इसके यह किसी पर भी यूं ही आक्रमण नहीं कर देता, बल्कि अपनी देहभाषा के ज़रिए उसे दूर रहने की चेतावनी देता है। जानिए, संस्कृत में हस्ती कहलाने वाले इस अलबेले पशु की अनूठी हस्ती के बारे में।
यह विदा करने का महीना है...
साल समाप्त होने को है, किंतु उसकी स्मृतियां संचित हो गई हैं। अवचेतन में ऐसे न जाने कितने वर्ष पड़े हुए हैं। विगत के इस बोझ तले वर्तमान में जीवन रह ही नहीं गया है। वर्ष की विदाई के साथ अब वक़्त उस बोझ को अलविदा कह देने का है।
सर्दी में क्यों तपे धरतीं?
सर्दियों में हमें गुनगुनी गर्माहट की ज़रूरत तो होती है, परंतु इसके लिए कृत्रिम साधनों के प्रयोग के चलते धरती का ताप भी बढ़ने लगता है। यह अंतत: इंसानों और पेड़-पौधों सहित सभी जीवों के लिए घातक है। अब विकल्प हमें चुनना है: जीवन ज़्यादा ज़रूरी है या फ़ैशन और बटन दबाते ही मिलने वाली सुविधाएं?
उज्ज्वल निर्मल रतन
रतन टाटा देशवासियों के लिए क्या थे इसकी एक झलक मिली सोशल मीडिया पर, जब अक्टूबर में उनके निधन के बाद हर ख़ास और आम उन्हें बराबर आत्मीयता से याद कर रहा था। रतन किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और महज़ दो माह पहले ही उनके बारे में काफ़ी कुछ लिखा भी गया। बावजूद इसके बहुत कुछ लिखा जाना रह गया, और जो लिखा गया वह भी बार-बार पढ़ने योग्य है। इसलिए उनके जयंती माह में पढ़िए उनकी ज़िंदगी की प्रेरक किताब। रतन टाटा के समूचे जीवन को चार मूल्यवान शब्दों की कहानी में पिरो सकते हैं: परिवार, पुरुषार्थ, प्यार और प्रेरणा। उन्हें नमन करते हुए, आइए, उनकी बड़ी-सी ज़िंदगी को इस छोटी-सी किताब में गुनते हैं।