सपा के वरिष्ठ नेता और मुस्लिम चेहरा कहे जाने वाले आजम खान का राजनीति में उत्थान से लेकर पतन और अब सजायाफ्ता होने तक के बीच का सियासी सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संस्थापक अब दिवंगत मुलायम सिंह ने मुस्लिम वोटों की खातिर आजम खान को खुली छूट दी थी। मुलायम के संरक्षण में पश्चिमी यूपी का बड़ा मुस्लिम चेहरा बन गए आजम को अखिलेश ने भी कभी नहीं छोड़ा। यही वजह थी कि समाजवादी पार्टी की सरकार के समय आजम खान इतना बेखौफ हो जाते थे कि न उन्हें कानून की चिंता रहती थी न ही पुलिस की। आजम खान की बदजुबानी की बात की जाए तो वह पीएम, सीएम, डीएम और एसएसपी जैसे बड़े अधिकारियों तक को खुले मंच पर गालियां देते थे। महिलाओं के अंडरवेयर के रंग बताते थे। सेना में जातिवाद ढूंढते थे। दंगाइयों का साथ देते थे। कुल मिलाकर आजम मौजूदा राजनीति की ऐसी जिंदा मिसाल हैं जिसमें राजनीतिक संरक्षण पाकर एक बदजुबान इंसान एक वर्ग विशेष का रहनुमा बन जाता है। सत्ता के गुरूर में आजम ने जो विष बेल बोई थी, अब उन्हें उसी की सजा मिल रही है। बदजुबानी के चलते आजम खान को एमपी/एमएलए कोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई है, जिसके चलते उनकी विधायिकी भी खतरे में है तो उनके सियासी सफर पर भी ग्रहण नजर आने लगा है। मामला 2019 का था। आजम लोकसभा का चुनाव लड़े थे। चुनाव प्रचार के दौरान सात अप्रैल को वह मिलक इलाके के खातानगरिया गांव में जनसभा को संबोधित करने गए थे। संबोधन के दौरान आजम ने वहां के तत्कालीन जिलाधिकारी आंजनेय कुमार सिंह, उनकी मां, पीएम मोदी व सीएम योगी के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की व मुस्लिमों को भड़काने तथा कटुता फैलाने जैसे आरोप लगाए थे। इसके बाद प्रभारी वीडियो अवलोकन टीम अनिल कुमार चौहान की तरफ से मिलक थाने में नौ अप्रैल 2019 को आजम के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। आजम के भड़काऊ भाषण का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था। आजम को आईपीसी की धारा 153ए, धारा 505 और धारा 125 के तहत दोषी करार देते हुए तीन साल की सजा सुनाई गई थी। यह इन धाराओं में अधिकतम सजा है। आजम खान पिछले काफी समय से सीतापुर जेल में बंद थे और कुछ माह पूर्व उनको जमानत मिली थी। आजम से पूर्व उनकी पत्नी और पुत्र को भी जेल से जमानत पर रिहा किया गया था।
Bu hikaye DASTAKTIMES dergisinin November 2022 sayısından alınmıştır.
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बेगम स्वरा का नया लुक चर्चा में
स्वरा का जीवन एक दिलचस्प सफर है, जिसमें फिल्मी करियर, राजनीतिक सक्रियता और व्यक्तिगत जीवन की कई अहम घटनाओं ने उन्हें मीडिया और दर्शकों के बीच खास स्थान दिलाया है। 1988 में दिल्ली के एक हिन्दू परिवार में स्वरा भास्कर का जन्म हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सीनियर स्कूल से की और बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद, स्वरा भास्कर ने जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) से समाजशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की।
ऋषभ पंत आईपीएल के नए किंग
आईपीएल 2025 के मेगा ऑक्शन में इस बार कुछ ऐसा देखने को मिला जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। टीम इंडिया के सुपरस्टार प्लेयर ऋषभ पंत आईपीएल के नये महाराज बन गये। पंत को लखनऊ सुपर जाएंट्स ने अपनी टीम का हिस्सा बनाने के लिए 27 करोड़ रुपए खर्च कर दिए, जिससे वह ऑक्शन के इतिहास में सबसे महंगे प्लेयर बन गए। ऋषभ पंत का दमदार प्रदर्शन उनकी छप्पड़फाड़ सैलरी की वजह बना।
प्रकृति, संस्कृति और स्त्री का बहुआयामी विमर्श
स्त्री चेतना, पर्यावरण और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सुप्रतिष्ठित लेखिका आकांक्षा यादव के आलेखों का संग्रह 'प्रकृति, संस्कृति और स्त्री' को पढ़ते हुए जहां हम विषयवार उनके विचारों, विवरणों और विवेचनों से प्रभावित होते हैं, वहीं हम निबंध विधा के महत्व को भी जान पाते हैं।
जन-गण-मन का भाग्य विधाता है संविधान
भारतीय गणतंत्र अमर है लेकिन राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है। न्यायपालिका संविधान की जिम्मेदार संरक्षक है। न्यायपीठ ने प्रशंसनीय फैसले किए हैं। अदालतों में लंबित लाखों मुकदमे 'न्याय में देरी से अन्याय के सिद्धांत' की गिरफ्त में हैं। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति का स्वातंत्र्य देता है। अनुच्छेद 20 अन्य बातों के अलावा, 'किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को अपने ही विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य करने से रोकता' है।
संकट में पाकिस्तानी शिया
2023 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान के पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में आबादी 7.85 लाख है। इसमें 99 फीसदी पश्तून हैं। पश्तून आबादी में तुरी, बंगरा, जैमुश्त, मंगल, मुकबल, मसुजाई और परचमकानी जनजातियां हैं। तुरी और कुछ बंगश शिया हैं बाकी सब सुन्नी हैं। कुर्रम जिले में 45 प्रतिशत आबादी शिया समुदाय की है जबकि पूरे पाकिस्तान में इस समुदाय की आबादी करीब 15 फीसद है।
डिजिटल अरेस्ट डर के आगे हार!
आज के युग में मोबाइल या लैपटॉप आम आदमी के जीवन में काफी प्रसांगिक ये हैं। लेकिन डिजिटल विकास तमाम खूबियां के साथ कुछ खामियां भी लाया है। सात समुंदर पार बैठा शख्स भी किसी से नजदीकियां बढ़ा सकता है, लेकिन इस शख्स की सोच के बारे में कोई डिवाइस नहीं बता सकती है कि वह किस श्रेणी का इंसान है। यहीं से साइबर क्राइम की शुरुआत होती है।
शीतकालीन चारधाम यात्रा में भी गुलजार होगी देवभूमि
शीतकाल के छह महीने भगवान बदरी विशाल की पूजा चमोली जिले में स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर व नृसिंह मंदिर जोशीमठ, बाबा केदार की पूजा रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ और मां गंगा व देवी यमुना की पूजा क्रमशः उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगा मंदिर मुखवा (मुखीमट) और यमुना मंदिर खरसाली (खुशीमठ) में होती है।
कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
प्रदूषण से सांसत में जान
दिल्ली राजधानी क्षेत्र में आजकल हवा में पीएम 10 का स्तर 318 और पीएम 2.5 का स्तर 177 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है जिसके फिलहाल कम होने की उम्मीद बेमानी है। जबकि स्वास्थ्य की दृष्टि से पीएम 10 का स्तर 100 से कम और पीएम 2.5 का स्तर 60 से कम ही उचित माना जाता है। खतरनाक स्थिति यह है कि दिल्ली के आसमान पर अब धुंध की परत साफ दिखाई दे रही है।
पीके अपनी पार्टी की रणनीति में हुए फेल
पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।