22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद देवभूमि उत्तराखंड में भी राम से जुड़े मंदिरों को लेकर चर्चाएं तेज हो गई। इन मंदिरों का अस्तित्व भी हजारों साल से है। ये मंदिर प्रभु श्रीराम की ऐसी विशेष स्मृतियां सहेजे हैं जिससे यहां के दर्शन करना परम सौभाग्य की अनुभूति करने जैसा है। आज यह स्थान अपने पौराणिक व दिव्यता के कारण देश ही नहीं, दुनिया के सामने आ गए हैं। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की रामभक्ति भी किसी से छिपी नहीं है, सीएम धामी भी श्रीराम की स्मृतियों को सहेजकर रखने हेतु संकल्पित हैं। सबसे पहले हम बात करते हैं उत्तराखंड के चमोली जनपद की, जहां कर्णप्रयाग के समीप रामनाली मंदिर है। रामनाली मंदिर को लेकर मान्यता है कि जब भगवान श्रीराम वनवास के दौरान दक्षिण प्रवास एवं सीताहरण से पूर्व सीता और लक्ष्मण के साथ पहाड़ों के भ्रमण पर (वर्तमान में उत्तराखंड) थे, तो इस स्थान पर सीता माता को प्यास लगी, लेकिन आसपास कोई जलस्रोत नहीं था। जब सीता माता प्यास से व्याकुल हो रही थीं तब रामचंद्र जी ने यहां स्थित सूखे नाले की ओर बाण चलाया, जिससे जलधारा फूट पड़ी और सीता माता ने अपनी प्यास बुझाई। तब से इस स्थान को रामनाली के नाम से जाना जाता है। वहीं पानी के छोटे से कुंड को सीता कुंड के नाम से जानते हैं। यहां से महज 500 मीटर दूर दिवाली गदेरे के मिलने के बाद रामनाली को रामगंगा नाम से जाना जाता है। विकासखंड गैरसैंण के मेहलचौरी माईथान क्षेत्र से 20 किलोमीटर का सफर तय कर रामगंगा अल्मोड़ा जनपद के चौखुटिया में प्रवेश करती है। यहां से नैनीताल जनपद के रामनगर शहर के नजदीक से गुजरते हुए रामगंगा नदी पत्थर और मिट्टी से निर्मित सबसे बड़े कालागढ़ डैम में जल संचय का काम करती है। इसके बाद उत्तर प्रदेश के गढ़गंगा नामक स्थान पर गंगा नदी में मिल जाती है। रामनाली मंदिर में स्थानीय लोगों ने श्रीराम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान जी की प्राचीन मूर्तियां स्थापित की हैं। यहां रामनवमी, हनुमान जयंती, नवरात्र सहित तमाम धार्मिक अवसरों पर पूजा अनुष्ठान व भंडारे किए जाते हैं। मंदिर के स्थानीय पुजारी अवतार सिंह बिष्ट व बाबा सुदामा दास कहते हैं कि सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के क्रम में मंदिर को जाने वाले रास्ते व अन्य सुविधाएं विकसित करे तो श्रदालुओं की आमद यहां बढ़ सकती है।
Bu hikaye DASTAKTIMES dergisinin February 2024 sayısından alınmıştır.
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बेगम स्वरा का नया लुक चर्चा में
स्वरा का जीवन एक दिलचस्प सफर है, जिसमें फिल्मी करियर, राजनीतिक सक्रियता और व्यक्तिगत जीवन की कई अहम घटनाओं ने उन्हें मीडिया और दर्शकों के बीच खास स्थान दिलाया है। 1988 में दिल्ली के एक हिन्दू परिवार में स्वरा भास्कर का जन्म हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सीनियर स्कूल से की और बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद, स्वरा भास्कर ने जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) से समाजशास्त्र में मास्टर डिग्री प्राप्त की।
ऋषभ पंत आईपीएल के नए किंग
आईपीएल 2025 के मेगा ऑक्शन में इस बार कुछ ऐसा देखने को मिला जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। टीम इंडिया के सुपरस्टार प्लेयर ऋषभ पंत आईपीएल के नये महाराज बन गये। पंत को लखनऊ सुपर जाएंट्स ने अपनी टीम का हिस्सा बनाने के लिए 27 करोड़ रुपए खर्च कर दिए, जिससे वह ऑक्शन के इतिहास में सबसे महंगे प्लेयर बन गए। ऋषभ पंत का दमदार प्रदर्शन उनकी छप्पड़फाड़ सैलरी की वजह बना।
प्रकृति, संस्कृति और स्त्री का बहुआयामी विमर्श
स्त्री चेतना, पर्यावरण और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सुप्रतिष्ठित लेखिका आकांक्षा यादव के आलेखों का संग्रह 'प्रकृति, संस्कृति और स्त्री' को पढ़ते हुए जहां हम विषयवार उनके विचारों, विवरणों और विवेचनों से प्रभावित होते हैं, वहीं हम निबंध विधा के महत्व को भी जान पाते हैं।
जन-गण-मन का भाग्य विधाता है संविधान
भारतीय गणतंत्र अमर है लेकिन राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है। न्यायपालिका संविधान की जिम्मेदार संरक्षक है। न्यायपीठ ने प्रशंसनीय फैसले किए हैं। अदालतों में लंबित लाखों मुकदमे 'न्याय में देरी से अन्याय के सिद्धांत' की गिरफ्त में हैं। अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति का स्वातंत्र्य देता है। अनुच्छेद 20 अन्य बातों के अलावा, 'किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को अपने ही विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य करने से रोकता' है।
संकट में पाकिस्तानी शिया
2023 की जनगणना के मुताबिक पाकिस्तान के पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम जिले में आबादी 7.85 लाख है। इसमें 99 फीसदी पश्तून हैं। पश्तून आबादी में तुरी, बंगरा, जैमुश्त, मंगल, मुकबल, मसुजाई और परचमकानी जनजातियां हैं। तुरी और कुछ बंगश शिया हैं बाकी सब सुन्नी हैं। कुर्रम जिले में 45 प्रतिशत आबादी शिया समुदाय की है जबकि पूरे पाकिस्तान में इस समुदाय की आबादी करीब 15 फीसद है।
डिजिटल अरेस्ट डर के आगे हार!
आज के युग में मोबाइल या लैपटॉप आम आदमी के जीवन में काफी प्रसांगिक ये हैं। लेकिन डिजिटल विकास तमाम खूबियां के साथ कुछ खामियां भी लाया है। सात समुंदर पार बैठा शख्स भी किसी से नजदीकियां बढ़ा सकता है, लेकिन इस शख्स की सोच के बारे में कोई डिवाइस नहीं बता सकती है कि वह किस श्रेणी का इंसान है। यहीं से साइबर क्राइम की शुरुआत होती है।
शीतकालीन चारधाम यात्रा में भी गुलजार होगी देवभूमि
शीतकाल के छह महीने भगवान बदरी विशाल की पूजा चमोली जिले में स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर व नृसिंह मंदिर जोशीमठ, बाबा केदार की पूजा रुद्रप्रयाग जिले में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ और मां गंगा व देवी यमुना की पूजा क्रमशः उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगा मंदिर मुखवा (मुखीमट) और यमुना मंदिर खरसाली (खुशीमठ) में होती है।
कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
प्रदूषण से सांसत में जान
दिल्ली राजधानी क्षेत्र में आजकल हवा में पीएम 10 का स्तर 318 और पीएम 2.5 का स्तर 177 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है जिसके फिलहाल कम होने की उम्मीद बेमानी है। जबकि स्वास्थ्य की दृष्टि से पीएम 10 का स्तर 100 से कम और पीएम 2.5 का स्तर 60 से कम ही उचित माना जाता है। खतरनाक स्थिति यह है कि दिल्ली के आसमान पर अब धुंध की परत साफ दिखाई दे रही है।
पीके अपनी पार्टी की रणनीति में हुए फेल
पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।