चिपको आंदोलन
मौजूदा उत्तराखंड के रेनी गांव की औरतें 1974 में पेड़ों की कटाई बंद कराकर राष्ट्रीय सुर्खियों में छा गईं. उनके आंदोलन ने देश को वन संरक्षण और वनीकरण को महत्व देने के लिए प्रेरित किया. लेकिन आज सवाल यह है कि जंगलों को कैसे उगाया जाए और काटा जाए और फिर से उगाया जाए ताकि भारत लकड़ी आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ सके.
नर्मदा बचाओ आंदोलन
बांधों के निर्माण (और नतीजतन जंगलों का नुक्सान) 'रोक' देना और इस निर्माण की वजह से विस्थापित हुए गांवों का पुनर्वास सुनिश्चित करना. 1985 में शुरू हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन की बहुत प्रशंसा हुई और बदनाम भी किया गया लेकिन हकीकत यह है कि इसने इस मुद्दे को उठाया कि कैसे हमें अपनी नीति में पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाना है.
भोपाल गैस त्रासदी और उसका अंजाम
दिसंबर 1984 में हुई इस भयानक औद्योगिक त्रासदी में लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और आज भी कई लोग इसका असर झेल रहे हैं. इससे औद्योगिक दुर्घटनाओं से निबटने के लिए कानूनों में सुधार हुआ है और इन्हें रोकने के लिए कंपनियों ने तैयारी भी की है. दुख की बात यह है कि ड़ितों को इंसाफ नहीं तक की केन्द्र राज्य कारों की नाकामी भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ित आज भी परेशानी झेल रहे हैं. उन्हें अभी तक इंसाफ नहीं मिला है.
प्रोजेक्ट टाइगर (और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के रूप में इसका विकास)
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin January 04, 2023 sayısından alınmıştır.
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