ऐसा लग सकता है कि हथकरघा बुनकरों के पास इन दिनों खुशियां मनाने के लिए कुछ है. पहले नोटबंदी और फिर कई खामियों के साथ लागू किए गए जीएसटी ने उनकी कमर तोड़ दी. उन्हें चोट पहुंचाने के लिए मिल के बने सिंथेटिक ब्रांड्स की ओर रुझान तो पहले से था ही, तिस पर आज के शहरी फैशन की सनक और पसंदनापसंदगी. यह सब कोविड की वजह से लगे दो साल के लॉकडाउन के दौरान चरम पर पहुंच गया. अखबारों में विरले ही इसका जिक्र होता है, पर बुनकरों के पास हाशिए पर धकेल दिए गए अपने काम-धंधे के बारे में कहने के लिए कुछ अच्छी चीजें खोज पाना मुश्किल हो सकता है.
"हरेक निराशा में आशा की किरण छिपी होती है"- यह भले ही घिसी-पिटी बात जान पड़े, पर बुनकरों के बारे में सच है. वे महामारी के बाद अचानक और उम्मीद के विपरीत अर्थव्यवस्था के दूसरे कई क्षेत्रों के मुकाबले अपने को बेहतर स्थिति में पाते हैं. तो इसकी क्या वजह हो सकती है? एक वजह तो इंटरनेट तक बढ़ती पहुंच है. पारंपरिक तौर पर दस्तकारों का अपने शहरी ग्राहकों से कम ही संपर्क होता था. अब हर जगह मौजूद स्मार्टफोन की बदौलत अपने खरीदारों तक वे सीधे पहुंच सकते हैं, और गूगल, पिंटरेस्ट और वेबसाइटों तक भी, जहां वे न केवल डिजाइन और उत्पाद विकसित करने के लिए नए विचारों की तफ्तीश बल्कि कीमत को लेकर मोल-भाव भी कर सकते हैं. यह उन बिचौलियों पर निर्भर होने से बेहतर है जो अगर शोषणकारी न भी हों तो नादान तो हैं ही. अब उन्हें पता है कि लाइफस्टाइल स्टोरों पर दूसरे उनके उत्पाद किस कीमत पर बेच रहे हैं. उनके अपने फेसबुक और इंस्टाग्राम पेज हैं. उन्होंने वीडियो कॉल पर ग्राहकों से बात करना सीख लिया है और अपने काम का ऑनलाइन प्रचार करना भी. यहां तक कि अनपढ़ दस्तकार महिलाएं भी अब तस्वीरों से बुनावट या रंग संयोजन पहचान सकती हैं.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin January 04, 2023 sayısından alınmıştır.
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"