कश्मीर से उनका रिश्ता यहां आकर रहने से पहले ही जुड़ गया था. मूलत: पंजाब में पटियाला की रहने वाली और जम्मू के छावनी में रहने आईं दीपा सोनी का परिवार दशकों से एक घुमंतू व्यापारी से पश्मीना शॉल और पापियर माशे (कागज की लुगदी से बनी चीजें) खरीदता था, जिन्हें वे तंगमर्ग के फारूक बाबा के नाम से जानते थे. यह परंपरा पीढ़ियों से उनके परिवार में चली आती थी और उन्हें सबसे बड़ा डर यही था कि उनकी पीढ़ी के साथ यह खत्म हो जाएगी. इस विरासत को आगे ले जाने में युवाओं की न दिलचस्पी थी और न धैर्य.
बाबा की कहानी ने दिल से कलाकार सोनी के दिल को छू लिया. उनके सरीखे दस्तकारों के लिए कुछ करने को वे हमेशा बेताब रहतीं. मौका तब हाथ लगा जब उनके सरकारी सेवक उनके पति को 2021 में श्रीनगर में तैनाती मिली. सोनी हुनरमंद और शौकिया शिल्पकारों और खासकर दूर-दराज की ग्रामीण युवतियों के लिए मुफ्त कार्यशालाएं लगाने लगीं. वे कहती हैं, "आठ से अस्सी तक हर उम्र के लोग मेरी कार्यशालाओं में आने लगे."
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin January 18, 2023 sayısından alınmıştır.
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