राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, प्रधानमंत्री के ये ताबड़तोड़ दौरे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की खोई हुई सियासी जमीन तलाशने की कोशिश हैं. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को इन्हीं क्षेत्रों में सर्वाधिक नुक्सान हुआ था. उस वक्त भाजपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाने वाला गुर्जर और मीणा समुदाय उससे दूर छिटककर कांग्रेस के पाले में चला गया था. गुर्जर और मीणा बाहुल्य माने जाने वाले भरतपुर संभाग की 19 सीटों में से भाजपा को सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई थी. यहां कांग्रेस को 13 सीटों और निर्दलीय एवं अन्य दलों के उम्मीदवारों को पांच सीटों पर जीत मिली थी.
इसी तरह जयपुर संभाग में भी भाजपा को 54 में से महज 11 सीटें ही मिली थीं. जयपुर संभाग के अलवर, दौसा, टोंक, झुंझुनूं और जयपुर के ग्रामीण इलाकों को भी गुर्जर और मीणा बाहुल्य माना जाता है. 2018 में कांग्रेस को जयपुर संभाग में एक तिहाई यानी, 33 सीटें हासिल हुई थीं.
इसके अलावा उदयपुर संभाग जिसे आदिवासी बाहुल्य माना जाता है, वहां भी भाजपा अब अपना राजनीतिक वजूद हासिल करने की फिराक में है. साल 2018 में इस संभाग की 28 सीटों में से 15 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी. साल 2008-09 के बाद राजस्थान का आदिवासी वोट बैंक भाजपा की तरफ मुड़ा है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनावों में यहां कांग्रेस को भी 10 सीटें मिली थीं. इसके अलावा दो सीटें भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के खाते में गई.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin February 15, 2023 sayısından alınmıştır.
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