वैसा हुआ नहीं जैसी कि अटकलें थीं. समाजवादी पार्टी (सपा) के विधान परिषद सदस्य स्वामी प्रसाद मौर्य ने तुलसीदास के लोकप्रिय ग्रंथ रामचरितमानस को जातिवादी बताकर पूरे सियासी हल में बावेला मचा दिया था. 28 जनवरी को लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित सपा कार्यालय में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और मौर्य के बीच बंद कमरे में मुलाकात हुई तो लगा कि इस संवाद के बाद मौर्य का 'मानस' बदलेगा और मानस पर चल रहे विवाद का पटाक्षेप होगा. पर हुआ लगभग उलटा. मुलाकात के बाद बाहर निकलकर दोनों नेताओं ने जाति जनगणना पर बयान दिया और फिर अखिलेश ने लखनऊ में गोमती नदी के किनारे झूलेलाल घाट पीतांबरा महायज्ञ स्थल की परिक्रमा करने के बाद बयान दिया "भाजपा पिछड़ों और दलितों को शूद्र मानती है." इस बयान से ही सपा की आगे की रणनीति का संकेत मिलने लगा था. करीब 24 घंटे बाद जब अखिलेश ने 64 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान किया तो साफ हो गया कि पिछड़ों और के बीच जनाधार बढ़ाकर सपा यूपी में अपना पुराना गौरव वापस लाना चाहती है.
सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के जरिए अखिलेश ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण साधने की भरपूर कोशिश की है. स्वामी प्रसाद मौर्य को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर अखिलेश ने स्पष्ट कर दिया कि मानस के कुछ प्रसंगों पर आपत्ति जताकर पिछड़ी और दलित जातियों का समर्थन पाने की रणनीति पर सपा की मौन सहमति है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin February 15, 2023 sayısından alınmıştır.
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