फरवरी की सात तारीख को मुजफ्फरपुर से आनंद विहार जाने वाली ट्रेन सप्त क्रांति दो बजे बेतिया पहुंची. हमेशा की तरह एसी टू टियर डिब्बे के पास यात्रियों से ज्यादा उन्हें विदा करने आए लोगों की भीड़ थी. उन्हीं में करीब 60 वर्षीया छाया देवी भी थीं जो दिल्ली के द्वारका इलाके में रहने वाली अपनी बेटी से मिलने जा रही थीं. उनके सगे-संबंधी उन्हें उनकी सीट पर बैठाकर झटपट उतर गए. जैसे ही ट्रेन करीब सात बजे गोरखपुर पहुंची एक महिला कॉन्सटेबल हाथ में एक सूची लेकर पहुंची, बर्थ नंबर 43 पर पहुंचकर उसने पूछा, "छाया देवी कौन हैं ?" “जी, मैं हूं." "आपको कोई परेशानी तो नहीं है ?" "नहीं." "अगर आपको कोई शिकायत हो तो आप इस नंबर पर हमें बताइएगा." फिर उसने खिड़की के ऊपर वाली बर्थ पर बैठी किसी 15 वर्षीया लड़की से बात की, जो अकेले सफर कर रही थी.
दरअसल, वह कॉन्सटेबल अकेले सफर कर रही महिला यात्रियों की 'मेरी सहेली' थी, जो रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) की विभिन्न पहल में से एक है. देशभर में आरपीएफ की 265 मेरी सहेली की टीमें हैं. इनकी सदस्य सिंगल लेडी पैसेंजर से यात्रा शुरू होने से पहले संपर्क करती हैं. बीच के किसी स्टेशन पर भी उनसे खैरियत पूछती हैं और फिर यात्रा खत्म होने के बाद उनके तजुर्बे दर्ज करती हैं. छह फीसद महिला कर्मियों के साथ आरपीएफ देश का सबसे ज्यादा महिला सुरक्षाकर्मियों वाला अर्धसैनिक बल है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin February 22, 2023 sayısından alınmıştır.
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सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"