मुंबई की एक बीडीडी चॉल के निवासी सुधीर सुहास अदेलकर अपनी किताबें लेकर हर शाम, वर्ली के आर. ए. पोद्दार आयुर्वेद मेडिकल कॉलेज भवन के पीछे की एक संकरी गली में आते हैं. जब तक वे सुदाम कालू अहिरे रोड पर पहुंचते हैं, तब तक कई अन्य युवा पहुंच चुके होते हैं. ये सभी पेड़ों से घिरे फुटपाथ के छोटे हिस्से पर बैठ जाते हैं. शहर के विभिन्न हिस्सों से आने वाले ये बच्चे चॉलों, मलिन बस्तियों और शहर में रहने वाले हजारों निम्न आय वाले परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. ये सभी एक नेक काम के लिए यहां इकट्ठा होते हैं: पढ़ाई. जहां जल्दी तिल रखने की भी जगह न मिलती हो, ऐसे मुंबई जैसे महानगर में 'अभ्यास गली' उनकी पढ़ाई के लिए एकमात्र समर्पित जगह है—उनके लिए यह लक्जरी ही है जो उन्हें माचिस की डिबिया जैसे अपने घरों में नहीं मिल सकती जिनमें वे परिवार के कई सदस्यों के साथ रहते है, और न ही यह शोरगुल वाले उनके पड़ोस में मिल सकती है. वे यहां देर रात तक रुकते हैं, अपने साथियों के साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हैं, आपस में नोट्स शेयर करते हैं, या स्वाध्याय करते हैं. दशकों से इसी गली में पढ़कर कई लोग वकील, डॉक्टर या पुलिस अधिकारी बने हैं. 180 वर्ग फुट के एक छोटे-से घर से आने वाले अदेलकर आठवीं कक्षा से यहीं पढ़ाई कर रहे हैं. अदेलकर कहते हैं, “अब, मैं महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं. मेरे घर में जगह नहीं है. यह पढ़ने के लिए एक शांत जगह है."
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin February 22, 2023 sayısından alınmıştır.
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ठोकने की यह कैसी नीति
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अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"