'मिलेट मैन'! नहीं, स्वस्थ खेती करने वाली दलित महिलाओं के दूत
India Today Hindi|April 05, 2023
सतीश के काम की वजह से ज्वार और बाजरा जैसे मोटे अनाज का दूर-दूर तक प्रचार शुरू हुआ. आज से 22 साल पहले हैदराबाद में उन्होंने इन अनाजों पर आधारित एक भोजनघर बनवाया
सोपान जोशी
'मिलेट मैन'! नहीं, स्वस्थ खेती करने वाली दलित महिलाओं के दूत

स्मृतिः पी. वी. सतीश 1945-2023

भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष घोषित किया था. शनिवार, 18 मार्च को दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में 'ग्लोबल मिलेट्स (श्री अन्न) सम्मेलन' का उद्घाटन हुआ. इसके अगले ही दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गई जिसे सबसे अधिक श्रेय जाता है इन अनाजों को फिर से प्रचलन में लाने का. एक लंबी बीमारी के बाद 77 साल की उम्र में 19 मार्च को पी.वी. सतीश का देहांत हो गया. उन्हें कई श्रद्धांजलियां दी गईं, जिनमें याद दिलाया गया कि भारत के असली 'मिलेट मैन' वे ही हैं. ऐसा इसलिए कि यह खिताब कम-से-कम दो और लोगों पर पहले ही मढ़ा जा चुका है और इसके अन्य दावेदारों भी होंगे ही! हमारे इस इश्तेहारी दौर की फितरत यही है. सच बताने लायक तभी होता है जब वह आसानी से गले उतर सके. वर्ना कल्पनाओं से, सच्चे-झूठे 'लेबलों' से काम चल जाता है तो फिर आखिर भारत का असली 'मिलेट मैन' है कौन?

अगर सतीश इस सवाल को सुनते, तो हंसते. उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया इस तरह की सतही समझ और विज्ञापनी लेबल हटाने में. उनके जीते-जी उन्हें किसी ने 'मिलेट मैन' कहा हो यह उनके सहयोगियों को पता नहीं. इश्तेहारों की भाषा और तौर-तरीके वे 1960 के दशक से जानते थे, उन्हें पढ़ाते भी थे. अपनी सूझ-बूझ का उपयोग उन्होंने साबुन-तेल या सॉफ्टवेयर या आर्थिक विकास का सपना बेचने के बाजारू अभियानों में नहीं किया.

अपना फलता-फूलता करियर 1980 के दशक में छोड़कर वे साधारण महिलाओं के खेती-बाड़ी के विवेक को समझने में जुट गए. सतीश के बारे में लोग इतना कम इसलिए जानते हैं क्योंकि उन्होंने आत्मप्रचार से लंबी दूरी बना कर रखी, न अपने आप को चमचों से घेरे रखा जो उनका ढोल बजाएं. उन्होंने हमारे साधारण समाज की मेधा का अध्ययन किया. उसे वह सम्मान दिलाने की कोशिश की जिसकी उपेक्षा समाज का पढ़ा-लिखा, आत्मलीन वर्ग करता ही रहता है. सतीश के नायाब जीवन में 'मिलेट' केवल एक कड़ी थी.

मैसूरु का एक धनवान परिवार

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