कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कहां पता था कि सितंबर 2013 में जिस अध्यादेश को उन्होंने इतने नाटकीय अंदाज में फाड़कर फेंक दिया था, 10 साल बाद वही उनके गले की फांस बन जाएगा. कांग्रेस की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने जो अध्यादेश पारित किया था वह आपराधिक कृत्यों के लिए दोषी ठहराए गए और कम से कम दो साल की जेल की सजा पाने वाले जन-प्रतिनिधियों को संसद या विधानसभाओं से तत्काल अयोग्यता से बचा लेता. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, राहुल ने अपनी ही सरकार के अध्यादेश को 'बकवास' करार दिया था. दो साल बाद, उन्होंने मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. उनके चिंतित होने की वजह थी. 2014 तक, उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं था, लेकिन 2019 में दाखिल चुनावी हलफनामे में छह आपराधिक मामले थे, जिनमें से ज्यादातर मानहानि से जुड़े थे. उनकी दलील खारिज कर दी गई थी.
इस साल फरवरी में छत्तीसगढ़ के रायपुर में कांग्रेस के 85वें महाधिवेशन में भी राहुल ने भावुक स्वर में कहा था कि कैसे वे बचपन से बेघर हैं, उनके और उनके परिवार को आवंटित सरकारी बंगलों के अलावा उनके पास कोई आशियाना नहीं है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin April 12, 2023 sayısından alınmıştır.
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