दरअसल, बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को नियोजन पर शिक्षकों की नियुक्ति की 20 साल पुरानी परंपरा को बंद करने का फैसला लिया. उसने अब यह स्वीकार कर लिया कि पंचायतों की ओर से नियोजित अस्थायी शिक्षक राज्य की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर नहीं बना पा रहे. इसलिए शिक्षकों की नियुक्ति और उनकी सेवा की निगरानी का काम पंचायतों से लेकर फिर से सरकार के शिक्षा विभाग को सौंपने का फैसला लिया गया. अब तक राज्य में 9,222 शिक्षक नियोजन इकाइयां होती थीं, ये सभी पंचायत और स्थानीय निकायों की इकाइयां थीं. अब नई नियमावली के तहत राज्य में 38 जिलों के हिसाब से सिर्फ 38 नियोजन इकाइयां होंगी. और, भर्ती राज्य सरकार द्वारा गठित नया आयोग करेगा. इस नियमावली में यह भी कहा गया है कि अगर नियोजित शिक्षक राज्यकर्मी बनना चाहते हैं तो उन्हें भी अभ्यर्थियों के साथ इस परीक्षा में शामिल होना पड़ेगा.
बिहार में शिक्षा के मसले पर लगातार सक्रिय रहने वाले नवेंदु प्रियदर्शी कहते हैं, "2003 में जब पूरे देश में सर्व शिक्षा अभियान शुरू हुआ तो बिहार में भी ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की कमी को देखते हुए पंचायत शिक्षामित्र की योजना शुरू की गई. इसके तहत ग्रामीण इलाकों में दसवीं की मार्कशीट दिखाने पर पंचायतें स्थानीय बेरोजगार युवाओं की इस पद पर नियुक्त कर सकती थीं. उस वक्त इन्हें 1,500 रुपये प्रतिमाह के मानदेय पर रखा जाता था." 2005 में जब नीतीश कुमार की सरकार बनी तो 2006 में तत्कालीन शिक्षा सचिव मदन मोहन झा की अगुआई में प्रक्रिया में थोड़ा बदलाव कर इन्हें नियोजित शिक्षक का नाम दिया गया. तब भी डिग्री देखकर ही नौकरी दी जाती थी. हां, नौकरी में आने के बाद उन्हें प्रशिक्षित होने के लिए कहा जाता था.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin May 03, 2023 sayısından alınmıştır.
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