इक्कीस साल की ऋचा सिंह हमेशा से ही एक ऐसी इंसान रही हैं जिन पर उनके दोस्त आंख मूंदकर भरोसा कर सकते हैं. किशोरावस्था में होने वाली भावनात्मक उलझनें हों या फिर भविष्य को लेकर कोई चिंता, अथवा परिवार के आपसी झगड़े, ऋचा के दोस्तों को किसी भी बात पर उनके साथ खुलकर चर्चा करने में कभी कोई हिचक नहीं रही. ऋचा भी ध्यान से उनकी बातें सुनतीं हैं. ऐसे में, 2009 में जब उनकी एक दोस्त ने खुदकुशी करने जैसा कदम उठाना तय किया तो वे बुरी तरह हिल गईं. कॉलेज प्लेसमेंट के दौरान महीनों तक नौकरी नहीं मिलने से उनकी दोस्त तनाव में आ गई थी लेकिन चुपचाप सब बर्दाश्त करती रही. ऋचा के साथ किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि चीजें इस कदर बिगड़ जाएंगी. इस घटना ने ऋचा को एक बेहद महत्वपूर्ण सबक दिया- अगर लोगों को कोई ऐसा न मिले जो उन्हें समझता हो तो कुछ कहने-सुनने के बजाये फंदे पर झूल जाना उन्हें शायद कहीं ज्यादा बेहतर लगेगा. शायद यही वह शून्यता है जिसने भारत के युवाओं को यह मोर्चा खुद संभालने के लिए प्रेरित किया. अपनी दोस्त की मौत के पांच साल बाद ऋचा ने अपने दोस्त पुनीत मनुजा- जिन्होंने खुद भी भावनात्मक स्तर पर आधुनिक जीवन का खामियाजा भुगता है के साथ मिलकर एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म योरदोस्त शुरू किया. यह प्लेटफॉर्म खासकर युवाओं को मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों से जोड़ता है और उन्हें सहयोग देता है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin May 03, 2023 sayısından alınmıştır.
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सबसे अहम शांति
देवदत्त पटनायक अपनी नई किताब अहिंसाः 100 रिफ्लेक्शन्स ऑन द सिविलाइजेशन में हड़प्पा सभ्यता का वैकल्पिक नजरिया पेश कर रहे हैं
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हिंदुस्तानी किस्सागोई का यह सुनहरा दौर
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स्वस्थ और सेहतमंद मुल्क के लिए एक रोडमैप
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ईवी में ऊंची छलांग के लिए भारत क्या करे
स्थानीयकरण से नवाचार तक... चार्जिंग की दुश्वारियां दूर करना, बैटरी तकनीक बेहतर करना और बिक्री के बाद की सेवाएं बेहतर करना ही इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति को मजबूत करने का मूल मंत्र है
अब ग्रीन भारत अभियान की बारी
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टकराव की नई राहें
हिंदू-मुस्लिम दोफाड़ अब भी जबरदस्त राजनैतिक संदर्भ बिंदु है. अपने दम पर बहुमत पाने में भाजपा की नाकामी से भी सांप्रदायिक लफ्फाजी शांत नहीं हुई, मगर हिंदुत्व के कट्टरपंथी तत्वों के खिलाफ आरएसएस की प्रतिक्रिया अच्छा संकेत
महिलाओं को मुहैया कराएं काम के लिए उचित माहौल
यह पहल अगर इस साल शुरु कर दें तो हम देख पाएंगे कि एक महिला किस तरह से देश की आर्थिक किस्मत बदल सकती है