अहम मौका आया तो कर्नाटक में कांग्रेस के दो ध्रुवों सिद्धारमैया और डी. के. शिवकुमार (डीकेएस) ने आपसी झगड़े दफनाकर अर्जुन की तरह एक ही साझा लक्ष्य पर अपनी नजरें टिकाए रखीं और वह लक्ष्य था पार्टी के लिए राज्य को फतह करना. 10 मई को कर्नाटक में मतदान से तीन दिन पहले भी कांग्रेस के चुनाव प्रबंधकों ने कल्पना के घोड़े दौड़ाए और एक मर्मांतक प्रहार का नजारा पेश किया. उन्होंने एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें पार्टी के दोनों वफादार सियासी सूरमा पुराने हमनवाओं के अंदाज में तनावमुक्त, बेरोकटोक, खुली बातचीत करते, विचार साझा करते और भविष्य की योजनाएं बनाते देखे गए. मगर जीत में जननेता सिद्धारमैया और कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष डीकेएस के बीच प्रतिद्वंद्विता एकदम खुले में आ गई.
शखर की कुर्सी के लिए दोनों के दावे मजबूत थे. 75 वर्षीय सिद्धारमैया योग्य प्रशासक थे, जो 2013 और 2018 के बीच पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रह चुके थे, तो 61 वर्षीय डीकेएस चतुर संगठनकर्ता थे, जिनकी अगुआई में कर्नाटक कांग्रेस ने अब 1989 के बाद के सबसे शानदार चुनावी नतीजे दिए हैं. एक ने पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और दलितों का सामाजिक मेल तैयार करने का दावा किया, तो दूसरा उस ताकतवर वोक्कालिगा समुदाय की नुमाइंदगी करता था जिसके समर्थन से पार्टी ने दक्षिणी कर्नाटक का इलाका जीता. सिद्धारमैया को कांग्रेस विधायकों के बहुमत का समर्थन हासिल था तो डीकेएस की पहचान पार्टी के प्रति उनकी बेधड़क वफादारी थी. फैसला अंततः पार्टी आलाकमान पर छोड़ दिया गया, जिसमें अब कर्नाटक के एक और दिग्गज नेता एआइसीसी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल थे. इसमें उन्हें चार दिन लगे, जब दिल्ली में सख्त मोलभाव के बाद कहीं जाकर सुलह का रास्ता निकाला गया.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin May 31, 2023 sayısından alınmıştır.
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