रामबचन यादव ने धोती में गांठ बांधकर मोबाइल साइलेंट मोड में रखा हुआ है. 'सीताहरण' के लिए साधु का कॉस्ट्यूम और मेकप. मंच के पीछे आंखें मींचकर डॉयलॉग बुदबुदा रहे हैं: ओम भवति भिक्षां देहि. इसी बीच उन्हें घर पर बंधी गाय का ख्याल आता है और वे धीरे से मोबाइल निकालकर फोन लगाते हैं: “अरे गयवा के तनी देखि लिहा. टाइम से चारा-पानी दे दिहा." यह उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का पिछले दशहरे के दिनों का वाकया है. मुख्यालय से यही कोई 15 किमी दूर आजमगढ़ रोड पर भड़सर गांव का. वहां के प्राइमरी स्कूल में हर साल की तरह रामलीला का मंच सजा है. सुरमई ठंड और रामकथा, दोनों रात के पहले पहर में धीरे-धीरे तारी हो रहे हैं. मंच के सामने बिछे बेतरतीब टाट और बोरों पर कई गांवों के नर-नारी बैठे सीता को निहार रहे हैं. बहुरूपिया मारीच हिरन बनकर राम को अपने पीछे ले गया है. लक्ष्मण के सामने सीता गा रही हैं, “गइलैं खोजै हीरना, कि राम अइलैं फीर ना... पहुंचलें त ना" (हिरन ढूंढ़ने गए राम फिर वापस नहीं आए, पहुंचे तो नहीं). नामी भोजपुरी गायक मदन राय के एक खासे पॉपुलर गीत “फेंक देहलैं थरिया, बलम गइलैं झरिया... पहुंचलें कि ना" (थाली फेंककर बालम झरिया चले गए, पहुंचे कि नहीं) की धुन उधार लेकर सीता अपना दुःख बता रही हैं. इक्कीसवीं सदी के शुरुआती दशक तक कोयला मजदूरी के लिए जाते अनगिनत लोगों की आवाज बन चुका एक गीत ओढ़कर, हजारों साल से कही जा रही एक कथा हमारे आज के खांचे में फिट हो जाती है. दर्शकों के बीच बैठीं ग्रामीण महिलाओं और सीता की तकलीफ एक जैसी दिखने लगती है.
इसी रामायण का ताजातरीन वर्जन अभी पिछले महीने जून में फिल्म निर्देशक ओम राउत ने अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म आदिपुरुष के रूप में पेश किया. तेरी बुआ का बगीचा... कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का... इसी तरह के डॉयलाग्स ने इस फिल्म के सिनेमाघरों में चढ़ते ही ऐसा तूफान उठाया, ऐसी छीछालेदर कराई कि अदालतों को दखल देकर उन्हें बदलवाना पड़ा.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin July 19, 2023 sayısından alınmıştır.
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