गांव के सरपंच जब्बार जाट का यह बयान कि बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हुई, स्थिति की गंभीरता बताती है. हालांकि, जिला विकास अधिकारी शैलेश प्रजापति ने केवल दो मौतों के लिए कुपोषण को जिम्मेदार बताया है. इस गंभीर घटना को स्थानीय मीडिया ने काफी जोर-शोर से प्रकाशित किया. साथ ही, दो हफ्ते पहले जारी हुई नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) रिपोर्ट के इस पहलू को भी उजागर किया कि गुजरात में हर 100 में से 38 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं.
यह 2021 के बाद रिपोर्ट का दूसरा संस्करण है, और इस व्यापक सूचकांक में तीन महत्वपूर्ण आयामों-स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा और जीवन स्तर के आधार पर राज्यों और जिलों में गरीबी की गंभीरता का आकलन किया गया है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों पर आधारित इस सूचकांक के मुताबिक, गुजरात अपनी गरीबी की दर 2015-16 के 18.47 फीसद के मुकाबले 2019-21 में मामूली सुधार के साथ 11.66 फीसद पर लाने में सफल रहा है. वहीं, कुपोषण के मामले में गुजरात का प्रदर्शन 41.37 फीसद की तुलना में थोड़ा सुधरकर 38.09 फीसद हो गया है. हालांकि, समान जीडीपी वाले राज्यों और बच्चों की पोषण संबंधी जरूरतें पूरी किए जाने के प्रयासों की तुलना करें तो यह सुधार कम ही लगते हैं.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin September 06, 2023 sayısından alınmıştır.
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