हमारे पास सांस से संबंधित बीमारियों के कई मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिन्हें यह सलाह चाहिए कि क्या वे नवंबर-दिसंबर में दिल्ली से कहीं बाहर चले जाएं." नई दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में पल्मनरी मेडिसिन विभाग के हेड और सेंटर फॉर ऑक्यूपेशनल ऐंड एन्वायरन्मेंटल हेल्थ के सह प्रभारी डॉ. नरेश कुमार उनके पास आने वाले मरीजों की चिंताओं का जिक्र करते हुए बताते हैं.
दरअसल, हर बार सर्दियों के दौरान होने वाले वायु प्रदूषण के चलते नवंबर-दिसंबर में दिल्ली गैस चैंबर सरीखी बन जाती है. इस दौरान सांस के मरीजों की जान पर बन आती है. डॉ. नरेश बताते हैं कि राष्ट्रीय राजधानी के आसपास के इलाकों में पराली जलाने की वजह से दिल्ली की हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें घुल जाती हैं और पीएम 2.5 तथा पीएम 10 जैसे हानिकारक कण तैरने लगते हैं. इस हवा के शॉर्ट टर्म एक्सपोजर से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसे सांस की पुरानी बीमारी वाले मरीजों की तकलीफ बढ़ जाती है और कई बार उनके अस्पताल में भर्ती होने की नौबत आ जाती है. वहीं लाँग टर्म एक्सपोजर से फेफड़े के कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है. इन जहरीली गैसों के असर से सिर्फ सांस की बीमारी ही नहीं बल्कि हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, हाइपरटेंशन के अलावा लीवर, किडनी, आंख, त्वचा आदि की बीमारियां होने का खतरा भी पैदा होता है.
सितंबर का महीना खत्म होने को है और अक्तूबर शुरू होते ही दिल्ली में रहने वाले बहुत लोगों को यह भय सताने लगता है। कि अब कुछ ही दिनों में राष्ट्रीय राजधानी जहरीली गैसों की चादर से ढक जाएगी और सांस लेना मुश्किल हो जाएगा.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin October 04, 2023 sayısından alınmıştır.
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