हवा में हर तरफ ग्रिल्ड चिकन की सुगंध फैली है. बड़े-बड़े बर्तनों में मशरूम और दाल पकाई जा रही हैं. शेफ की टोपी पहने एक दर्जन से अधिक महिलाएं 1,000 वर्ग फुट की रसोई में काम करने में व्यस्त हैं, कुछ बर्तनों में पकते व्यंजन चला रही हैं, तो कुछ चपाती बना रही हैं. एक तरफ विशाल कड़ाही में पापड़ तले जा रहे हैं.
दोपहर का एक बजा है और यह लंच का समय है. एप्रन पहने महिलाओं की एक टोली ट्रॉलियों पर खाने की थालियां लेकर कभी अंदर आ रही है तो कभी बाहर जा रही है. रसोई के बाहर एक अन्य समूह कैंटीन की व्यवस्था संभालने में व्यस्त है. यह सारा नजारा राजधानी पटना से करीब 40 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित भोजपुर जिले के कोइलवर में बिहार इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड अलाइड साइंसेज (बिमहास) के विशाल परिसर में कैंटीन का है. आप चाहें तो यहां समोसे, मैगी या मटन का भी लुत्फ उठा सकते हैं. कैंटीन तकरीबन हर समय ही डॉक्टरों और मरीजों के तीमारदारों से भरी रहती है, वहीं मरीजों के लिए उनके वार्ड तक स्वास्थ्यकर और पौष्टिक भोजन पहुंचाया जाता है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin January 31, 2024 sayısından alınmıştır.
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लीक से हटकर
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जब स्वच्छता बन गया एक आंदोलन
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जब मौन बन गया उद्घोष
एक पनबिजली परियोजना के विरोध में पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और पत्रकारों ने मिलकर जन जागरुकता अभियान चलाया और भारत के अब बचीखुची उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक, केरल की साइलेंट वैली को बचाने में कामयाब रहे।
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जमीनी स्तर पर संघर्ष से जन्मे इस ऐतिहासिक कानून ने भारत में लाखों लोगों के हाथों में सूचना का हथियार थमाकर गवर्नेस को न सिर्फ बदल दिया, बल्कि अधिकारों की जवाबदेही भी तय करने में बड़ी भूमिका निभाई