इन्हीं को मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया', ऐसे सवालों पर लंबे-लंबे लेख छप चुके हैं. लंबी बातचीत के दौरान वे इस बात से इनकार नहीं करते कि उन्हें मुख्यमंत्री आलाकमान ने बनाया. लेकिन इसी बातचीत के दौरान यह संकेत भी देते रहते हैं कि वे अपने पद को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं.
श्यामला हिल्स पर टिके रहने को लेकर जैसी अनिश्चितता शिवराज के सामने पूरे पौने चार साल रही, वैसी मोहन यादव के सामने नहीं है, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अपने निर्देशों में इतना स्पष्ट रहा है कि कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल जैसे दिग्गजों ने नियति को स्वीकार कर लिया. कहीं कोई किंतु-परंतु, कोई चूं-चपड़ नहीं. सबको शांत रहना है, यही पार्टी अनुशासन का तकाजा है. और मोहन यादव इसी शांति के बीच खुद को बतौर मुख्यमंत्री स्थापित कर रहे हैं. मध्य प्रदेश मुख्यमंत्री कार्यालय में हर ओर आपको नए चेहरे दिखते हैं. बरसों से जमे नौकरशाह उन्हें हल्के में न लें, इसे पक्का करने के लिए तहसीलदार से लेकर एसडीएम और एसपी से लेकर जिलाधिकारी तक के तबादले हुए हैं, सीधे मुख्यमंत्री के निर्देश पर. यही संदेश, ऐसी ही नसीहत कैबिनेट मंत्रियों को भी है पर थोड़ा अलग ढंग से. स्टाफ मुख्यमंत्री की मर्जी से ही नियुक्त हो रहा है.
लेकिन जैसे-जैसे मोहन यादव कुर्सी पर जमते जाएंगे, उन पर प्रदर्शन का दबाव भी बढ़ता जाएगा. उनकी पहली चुनौती है 2024 का लोकसभा चुनाव. प्रदेश की 29 सीटों में से 28 भाजपा के पास हैं, सो वह आश्वस्त है. बची छिंदवाड़ा सीट, जिसे हासिल करने की कुंजी खोजना उनकी पहली बड़ी परीक्षा होगी. कैसे करेंगे? इस पर वे साफगोई से कहते हैं, "मेरा ध्यान कमल पर है, कमलनाथ पर नहीं." लेकिन किसी संभावना से इनकार भी नहीं करते.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin March 13, 2024 sayısından alınmıştır.
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