पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर लोकसभा सीट से भाजपा ने कृष्णानगर राजघराने की अमृता राय को प्रत्याशी बनाया है और उन्हें रानी मां या राजमाता के तौर पर पेश कर रही है. इससे इस बात पर बहस छिड़ गई है कि क्या पार्टी उस सामंती संस्कृति को हवा देने की कोशिश कर रही है जिसका बंगाल की चुनावी राजनीति में नामोनिशान नहीं रहा है. तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इसकी आलोचना करते हुए भगवा खेमे को याद दिलाया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी को रानी या राजमाता बताना अनैतिक है.
ममता बनर्जी ने 31 मार्च को कृष्णानगर निर्वाचन क्षेत्र के धुबुलिया में एक जनसभा में कहा, "वे (अमृता राय को ) राजमाता कह रहे हैं... देश में कोई राजा नहीं, हम सब प्रजा हैं. और कोई राजा है तो वह अपने शाही महल में जाए और रहे." ममता के संदेश को उनकी पार्टी की उम्मीदवार महुआ मोइत्रा ने दोहराया.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin April 17, 2024 sayısından alınmıştır.
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परदेस में परचम
भारतीय अकादमिकों और अन्य पेशेवरों का पश्चिम की ओर सतत पलायन अब अपने आठवें दशक में है. पहले की वे पीढ़ियां अमेरिकी सपना साकार होने भर से ही संतुष्ट हो ती थीं या समृद्ध यूरोप में थोड़े पांव जमाने का दावा करती थीं.
भारत का विशाल कला मंच
सांफ्ट पावर से लेकर हार्ड कैश, हाई डिजाइन से लेकर हाई फाइनेंस आदि के संदर्भ में बात करें तो दुनिया के अन्य हिस्सों की तरह भारत की शीर्ष स्तर की कला हस्तियां भी भौतिक सफलता और अपनी कल्पनाओं को परवान चढ़ाने के बीच एक द्वंद्व को जीती रहती हैं.
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हम ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां मनोरंजन से हौवा खड़ा हो है और उसी से राहत भी मिलती है.
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खासी उथल-पुथल मचा देने वाली गतिविधियों से भरपूर भारतीय उद्यमिता के क्षेत्र में कुछ नया करने वालों की नई पौध कारोबार, टेक्नोलॉजी और सामाजिक असर पैदा करने के नियम नए सिरे से लिख रही है.
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महानता के दो रूप हैं. एक वे जो अपने पेशे के दिग्गजों के मुकाबले कहीं ज्यादा चमक और ताकत हासिल कर लेते हैं.
बोर्डरूम के बादशाह
ढर्रा-तोड़ो या फिर अपना ढर्रा तोड़े जाने के लिए तैयार रहो. यह आज के कारोबार में चौतरफा स्वीकृत सिद्धांत है. प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर भारत के सबसे ताकतवर कारोबारी अगुआ अपने साम्राज्यों को मजबूत कर रहे हैं. इसके लिए वे नए मोर्चे तलाश रहे हैं, गति और पैमाने के लिए आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस सरीखे उथल-पुथल मचा देने वाले टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए नवाचार बढ़ा रहे हैं.
देश के फौलादी कवच
लबे वक्त से माना जाता रहा है कि प्रतिष्ठित शख्सियतें बड़े बदलाव की बातें करते हुए सियासी मैदान में लंबे-लंबे डग भरती हैं, वहीं किसी का काम अगर टिकता है तो वह अफसरशाही है.