आज जब हम 78वां स्वाधीनता दिवस मना रहे हैं ऐसे मौके पर हमें अतीत में झांकने और यह देखने की जरूरत है कि हम अभी तक कहां पहुंचे हैं. साथ ही विकसित भारत@2047 के हमारे लक्ष्य के लिए आगे देखने की जरूरत है. किसी भी सरकार की पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है अपने लोगों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना. यह काम उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सीमाओं की सुरक्षा पक्की करना. यह लाल बहादुर शास्त्री थे जिन्होंने हमें 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया. 1960 के दशक के मध्य में कई अकाल से जूझने वाले भारत के पास इतनी भी विदेशी मुद्रा नहीं थी कि वह वैश्विक बाजारों से अनाज खरीद सके. हमें भुखमरी से सामूहिक मौतें टालने के लिए कम से कम एक करोड़ टन अनाज की जरूरत थी. उस समय अमेरिका भारत की मदद के लिए आगे आया और रुपए में भुगतान के बदले पब्लिक लॉ 480 (खाद्य सहायता) के तहत एक करोड़ टन गेहूं की पेशकश की जो एक तरह से अनुदान था क्योंकि वैश्विक बाजारों में रुपए की कोई हैसियत नहीं थी. हर 15 मिनट में एक जहाज खाद्य सहायता लेकर भारत आ रहा था जिसे पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के जरिए बांटा गया था. भारत को 'शिप टू माउथ' अर्थव्यवस्था माना गया था और कई लोगों ने देश के भुखमरी से बचने की उम्मीदें छोड़ दी थी क्योंकि आबादी बढ़ रही थी और खाद्य आपूर्ति उस मुकाबले बहुत कम हो रही थी.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin August 28, 2024 sayısından alınmıştır.
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