विदेशी निवेश का बढ़ता क्लेश
India Today Hindi|December 04, 2024
अर्थव्यवस्था मजबूत नजर आ रही है, मगर विदेशी निवेशक भारत पर अपना बड़ा और दीर्घकालिक दांव लगाने से परहेज कर रहे हैं
एम. जी. अरुण
विदेशी निवेश का बढ़ता क्लेश

इस साल मई-जून में आम चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के प्रचार अभियान का एक नैरेटिव यह भी था कि नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत ने दुनिया में अपनी सही जगह हासिल करना शुरू कर दिया है. वह 7 फीसद की दर से बढ़ रहा था, सबसे तेज गति से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था थी, 2027 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार थी और कारोबारी सुगमता में सुधार के मकसद से बनाई गई नीतियां विदेश से शानदार निवेश आकर्षित कर रही थीं. कम से कम कुछ वस्तुओं के लिए उसका विश्व का मैन्युफैक्चरिंग हब बनना तय लग रहा था.

मगर जमीनी स्थिति इतनी गुलाबी नहीं है. भारत जहां जोरदार रफ्तार से विकास कर रहा है, वहीं इस वृद्धि के अनुरूप प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) नहीं आ रहा है. एफडीआइ भारत की वृद्धि की कहानी में निवेशकों के जोखिम उठाने का पैमाना है. इसके विपरीत, एफडीआइ गिरावट की ढलान पर है. दरअसल, वित्त वर्ष 2024 में भारत में कुल (या सकल) एफडीआइ 16 फीसद से अधिक गिरकर 70.9 अरब डॉलर (6 लाख करोड़ रुपए) रह गया जो वित्त वर्ष 2022 में 84.8 अरब डॉलर (7.2 लाख करोड़ रुपए) था. वित्त वर्ष 2023 में यह 71.4 अरब डॉलर (6.2 लाख करोड़ रुपए) था. जीडीपी के फीसद के रूप में एफडीआई की शुद्ध आवक 2020 में 2.4 फीसद थी जो 2021 में गिरकर 1.4 फीसद रह गई. 2022 में यह थोड़ा सा बढ़ा और जीडीपी का 1.5 फीसद हो गया लेकिन 2023 में अच्छा-खासा गिरते हुए महज 0.8 फीसद ही रह गया. 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से ठीक पहले एफडीआइ अपने सर्वकालिक उच्च स्तर जीडीपी के 3.6 फीसद पर पहुंच गया था.

फोर्ब्स मार्शल के को- चेयरपर्सन नौशाद फोर्ब्स कहते हैं, "एफडीआइ घरेलू निजी निवेश की राह का अनुसरण करता है और घरेलू निजी निवेश कुछ समय से सुस्त बना हुआ है. विदेशी कंपनियां भारत में पैसे बना रही हैं, लेकिन भारत में कमजोर मांग के कारण उनकी ऐसी कोई मजबूरी नहीं कि वे अपनी क्षमता में इजाफा करें. इसलिए वे पैसा वापस ले जाती हैं. " एफडीआइ वापस तब जाता है जब अंतरराष्ट्रीय कॉर्पोरेशन रिटर्न कमाने के बाद अपना निवेश अपने गृह देश ले जाते हैं. यह लाभांश, शेयर बाइ बैक और शेयर तथा प्रतिभूतियों से प्राप्त रकम जैसी परिसंपत्तियों के भुगतान के जर हो सकता है. रक्षा जैसे कुछ क्षेत्रों में तीन साल का लॉक इन पीरियड लागू है.

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