जब दिल्ली के हृदयस्थल में स्थित भारत की सबसे पुरानी समकालीन कला दीर्घा धूमीमल अपनी परिधि में स्थित कनॉट प्लेस के शानदार इतिहास के प्रति अपनी आदरांजलि व्यक्त का फैसला करती है, तब साथ ही उसके अपने इतिहास पर फिर से नजर न डालना बेअदबी होगी. 1936 में स्थापित इस कला दीर्घा की 88 साल पुरानी विरासत दिल्ली के पहले और सबसे पुराने व्यावसायिक केंद्रों में से एक के तानेबाने में गहराई से गुंथी है. इसके प्रति कला इतिहासकार और क्यूरेटर अन्नपूर्णा गरिमेला के मन में गहरा और स्थायी प्रेम है, जिसे उन्होंने अपने बेंगलूरू स्थित रिसर्च और डिजाइन संस्थान जैकफ्रूट के जरिए फिलहाल चल रही प्रदर्शनी जॉइनिंग द डॉट्स: द पास्ट हैज अ होम इन द फ्यूचर में मूर्त रूप दिया है.
सात दिसंबर तक चलने वाली प्रदर्शनी उस कनॉट प्लेस के इतिहास का लेखा-जोखा प्रस्तुत करती है जो दशकों से तमाम कला रूपों में गहरे रूमानियत के साथ दर्ज सांस्कृतिक और राजनैतिक बदलावों का घटनास्थल रहा है. गरिमेला इस शो को दिल्ली के नाम अपना प्रेम पत्र कहती हैं. वे यहां लौट लौटकर आती हैं और पूछती हैं कि "क्या आप कनॉट प्लेस से 'भरपूर प्यार नहीं करते ?"
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin December 04, 2024 sayısından alınmıştır.
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लीक से हटकर
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खूबसूरत काया का जलवा
भारत की खूबसूरत बालाएं और वैश्विक सौंदर्य प्रतियोगिताएं, लगता है नब्बे के दशक से एक-दूसरे के लिए ही बनी हैं. और यह सिर्फ किस्मत की बात नहीं. खिताब जीतने वाली कई सुंदरियों ने बाद में इसके सहारे अपने करियर को बुलंदियों पर पहुंचाया
खरीदारी का मॉडर्न ठिकाना
शॉपिंग मॉल भारत में '90 के दशक की ऐसी अनूठी घटना है जिसने भारतीय मध्य वर्ग की खरीद के तौर-तरीकों को बदल दिया. 'खरीदारी के साथ-साथ मनोरंजन' केंद्र होने की वजह से वे अब कामयाब हैं. वहां हर किसी के लिए कुछ न कुछ है
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यूबी की किंगफिशर ने 1990 के दशक में बीयर को कूल बना दिया. तब से घरेलू अल्कोहल उद्योग के जोशीले दिन कभी थमे नहीं
डिस्को का देसी अंदाज
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विश्वनाथन आनंद अचानक ही सामने आए और दुनिया फतह कर ली. गुकेश के साथ 2024 में भारत को मिली उपलब्धि उसी विरासत का हिस्सा है
जब स्वच्छता बन गया एक आंदोलन
सामूहिक शर्म से लेकर राष्ट्रीय गौरव तक, खुले में शौच का चलन खत्म करने के देश के सफर में मजबूत सियासी इच्छाशक्ति और नेतृत्व के साथ-साथ समुदाय, कॉर्पोरेट और सेलेब्रिटी के मिलकर काम करने की दास्तान शामिल
जब मौन बन गया उद्घोष
एक पनबिजली परियोजना के विरोध में पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और पत्रकारों ने मिलकर जन जागरुकता अभियान चलाया और भारत के अब बचीखुची उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक, केरल की साइलेंट वैली को बचाने में कामयाब रहे।
बताने को मजबूर हुए बाबू
जमीनी स्तर पर संघर्ष से जन्मे इस ऐतिहासिक कानून ने भारत में लाखों लोगों के हाथों में सूचना का हथियार थमाकर गवर्नेस को न सिर्फ बदल दिया, बल्कि अधिकारों की जवाबदेही भी तय करने में बड़ी भूमिका निभाई