207 माओवादी मारे गए
सुरक्षाबलों के अभियानों में 1 जनवरी से 27 नवंबर, 2024 के बीच (इनमें 5 स्पेशल जोनल कमिटी सदस्य और 14 डिविजनल कमिटी सदस्य शामिल हैं)
दक्षिण छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग का दंतेवाड़ा. आकाश से झांकते बादलों से घिरी अलसाई दोपहर अचानक पुलिस लाइंस तेज हलचल से गुंजार हो उठती है. यहीं जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) का ठिकाना है. स्थानीय कमांडर जवानों से कहते हैं कि ब्रीफिंग के लिए तैयार हो जाओ. जवानों में लड़के और लड़कियां दोनों हैं, माओवाद के खिलाफ लड़ाई में कामयाबी की वजह से उनकी टुकड़ी को 'हरावल दस्ता' कहा जाने लगा है. कंधों पर लटकाए जाने वाले बैगों में फटाफट खाने-पीने की तैयार चीजें, फर्स्ट एड किट और दो-चार कपड़े भरे जाते हैं. गोला-बारूद लिया जाता है. और बस, ब्रीफिंग का वक्त हो जाता है.
छत्तीस घंटे पहले दूर-दराज के इलाकों में फोन कॉल की निगरानी करने वाली एक एजेंसी ने दक्षिण बस्तर में जंगलों से घिरी पहाड़ी से किए गए एक फोन कॉल का पता लगाया. यह ऐसी जगह तो थी नहीं जहां से कोई आम नागरिक कॉल करे. सूचना बस्तर के शीर्ष पुलिस अफसरों को दी गई. कॉल का विश्लेषण और जमीनी खुफिया जानकारियों तथा यूएवी (मानवरहित हवाई वाहन) के दृश्यों से मिलान करने पर पता चला कि इलाके में माओवादी कैंप हो सकता है. डीआरजी के कमांडर बताते हैं कि यह जगह करीब 100 किमी दूर है और आखिरी 20 किमी जंगल में रात के अंधेरे में पैदल पार करने होंगे. हमलावर दल में दूसरे संगठन भी थे - छत्तीसगढ़ पुलिस का स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) और सीआरपीएफ. सभी को जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने इस कार्रवाई के लिए बुलाया था. जवान एसयूवी और मोटरसाइकिलों पर सवार होते हैं. अभियान शुरू हो गया.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin December 18, 2024 sayısından alınmıştır.
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