माल और सेवा कर (जीएसटी), 2017
यह वर्ष 2000 की शुरुआत की बात है. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आर्थिक सलाहकार पैनल की बैठक बुलाई. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर बिमल जालान और उनके पूर्ववर्ती आइ.जी. पटेल और सी. रंगराजन की सदस्यता वाले इस पैनल ने देश के टैक्स ढांचे में व्यापक सुधारों की वकालत की थी. वैश्विक निवेश के लिए देश के नए सिरे से खुलने और उभरते उपभोक्ता बाजार के रूप में देखे जाने के साथ ही एक सरल, एकीकृत टैक्स प्रणाली की जरूरत साफ हो गई थी.
वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने जुलाई 2000 में अपने सलाहकार, अर्थशास्त्री विजय केलकर के नेतृत्व में दो टास्क फोर्स के गठन की घोषणा कर बदलाव के बीज बो दिए. उनकी सिफारिशों में एक एकीकृत माल एवं सेवा कर (जीएसटी) का प्रस्ताव एक गेम चेंजर के रूप में उभरा, जिसका मकसद खंडित और बोझिल टैक्स प्रणाली को बदलना था. इसका मुख्य उद्देश्य टैक्सेज में कमी लाना, अनुपालन को सरल बनाना और आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना था.
आखिरकार, भारत ने 17 केंद्रीय और राज्य टैक्सेज को एकीकृत करके जुलाई 2017 में जीएसटी को लागू कर दिया. इसने तीन बड़े बदलाव किए फैक्ट्री गेट पर लेवी की पुरानी व्यवस्था को बदल कर कराधान को उपभोग के बिंदु पर ले जाया गया; इनपुट टैक्स क्रेडिट के जरिए उत्पादन-वितरण के हर स्तर पर टैक्स को कम किया गया; एक ही जीएसटी रिटर्न ने कई टैक्स दाखिल करने की जरूरत को खत्म कर दिया.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin January 01, 2025 sayısından alınmıştır.
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