नए मुखिया के लिए तेज हुई माथापच्ची

पिछला विस्तार उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में 'निरंतरता' बनाए रखने के उद्देश्य से दिया गया था. भाजपा के संविधान के मुताबिक, निर्वाचक मंडल बनाने के लिए कम से कम 50 फीसद राज्य इकाइयों को अपने-अपने अध्यक्षों का चुनाव करना होता है. मगर यह प्रक्रिया काफी लंबी खिंच गई है.
पार्टी सूत्रों की मानें तो इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि नेतृत्व का पूरा ध्यान 2024 की दूसरी छमाही में होने वाले विधानसभा चुनावों पर था. एक सचाई यह भी है कि कुछ प्रमुख राज्य इकाइयों में गुटबाजी भी कम नहीं. अंततः दिसंबर में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 29 में राज्य स्तर पर पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की गई. मगर यह अब तक केवल 13 में ही पूरी हो पाई है और केवल बिहार और राजस्थान ही इस सूची में शामिल दो बड़े राज्य हैं.
एक बड़ी समस्या यह है कि जून 2024 से नड्डा केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री पद की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं जबकि अलिखित ही सही, भाजपा में 'एक व्यक्ति, एक पद' का नियम है. और नए अध्यक्ष का चयन ऐसे समय पर और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है जब पार्टी पीढ़ीगत बदलाव की संभावनाएं तलाश रही है. भले ही लोग इस बात से सहमत न हों लेकिन भाजपा इस समय अपने चरम पर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में हैं और पार्टी अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सत्ता में है.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin April 02, 2025 sayısından alınmıştır.
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