यह एक भ्रम हैं कि हमारा भू-जल साफ सुथरा और पीने योग्य है, बल्कि हकीकत यह है कि हमारे पानी के स्रोत दूषित खनिज से भरे पड़े रहते हैं, वजह, हमारे जल स्त्रोतों में करोड़ो गैलन पानी बिना उपचारित प्रक्रिया के विभिन्न जल स्त्रोतों में चला जाता है। दूषित जल के जल स्त्रोतों में प्रवेश को रोकने के लिए 'वेस्ट वॉटर मैनेजमेंट' प्रचलित प्रक्रिया है जिसके जरिए दूषित जल को नियंत्रित किया जाता है ताकि हमारे जल स्रोतों में जो पानी वापस जाए वह हमारे इकोसिस्टम के लिए सुरक्षित रहें और मानव जीवन पर कुप्रभाव नहीं डाले। (दूषित) अपशिष्ट जल प्रबंधन इस दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
अपशिष्ट जल विभिन्न प्रक्रियाओं से उपचारित किया जाता हैं जिनमें इफ्यूलैंट ट्रीटमेंट प्लांट (ई.टी.पी.) सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट [एस. टी. पी.] तथा कॉमन इफ्यूलैंट ट्रीटमेंट प्लांट [सी.ई.टी.पी.] प्रमुख है। इन संयंत्रों की स्थापना विभिन्न औद्योगिक संस्थानों तथा आवासीय/व्यवसायिक परियोजनाओं में की जाती है। मानव जीवन पर अपशिष्ट जल के कुप्रभाव को रोकने तथा तथा अपशिष्ट जल प्रबंधन को सुचारू रूप से चलाने हेतु भारत सरकार ने विभिन्न अधिनियम बनाएं हैं और महत्वपूर्ण नियमों का गठन किया है। साथ ही इस विषय पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दि. 22.02.2017 को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है जिसके अनुसार 31.03.2018 तक मांग के अनुसार ई.टी.पी. / एस.टी. पी./ सीईटीपी की स्थापना तथा कार्यरत रखना अनिवार्य किया गया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश को माननीय राष्ट्रीय हरित अभिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) एन.जी.टी ने भी पालन करते हुए अपने प्रकरण क्रमांक 593/2017 के तहत आदेश जारी किए जिसके पालन हेतु केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने अपनी स्टेटस रिपोर्ट भी एनजीटी में प्रस्तुत की है।
Bu hikaye Open Eye News dergisinin January 2023 sayısından alınmıştır.
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