लेकिन पृथ्वी पर सौर ऊर्जा का अपेक्षित स्तर पर उत्पादन नहीं हो पा रहा है। अंतरिक्ष से भी सौर ऊर्जा समुचित मात्रा में पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाती। अनुमान है कि सौर ऊर्जा का केवल 48 प्रतिशत ही पृथ्वी की सतह तक पहुंच पाता है। ऊर्जा का शेष भाग पृथ्वी के वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसों और धूल द्वारा अवशोषित किए जाने के कारण बाधित होता है। पृथ्वी का वायुमंडल भी सूर्य की 23 प्रतिशत किरणों को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देता है। इसलिए पृथ्वी पर इसका उपयोग करने के प्रयासों में बहुत सारी ऊर्जा बर्बाद हो रही है। सौर ऊर्जा को हासिल करने का सबसे टिकाऊ तरीका अंतरिक्ष से सीधे पृथ्वी को बिजली संप्रेषित करने का है। दरअसल, सौर ऊर्जा को पृथ्वी पर भेजने की पूरी प्रक्रिया बेहद महंगी है। इसके बावजूद यह सूर्य की अनंत ऊर्जा तक हमारी सीधी पहुंच को सुनिश्चित करती है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि अंतरिक्ष का वातावरण पृथ्वी की तरह सौर विकिरण को अवशोषित नहीं करता या बिखेरता नहीं है। इससे फोटोवोल्टिक सेलों को बादलों द्वारा बाधित हुए बिना अंतरिक्ष में अधिक ऊर्जा एकत्र करने का अवसर मिलता है। अंतरिक्ष आधारित ऊर्जा का दूसरा लाभ यह है कि ऊर्जा का उपयोग दिन के 24 घंटे और सप्ताह के सातों दिन किया जा सकता है। रात से बचने के लिए सौर ऊर्जा उपग्रहों को उचित कक्षा में स्थापित करके इसे पूरा किया जा सकता है। अंतरिक्ष आधारित सौर ऊर्जा को व्यावहारिक बनाने के रास्ते में कई इंजीनियरिंग चुनौतियां हैं जैसे अंतरिक्ष में बड़े पैमाने पर सौर पैनलों के बुनियादी ढांचे को तैनात करना, जो एक कठिन कार्य है। इसके साथ ही लंबे समय तक सौर ऊर्जा का उचित उपयोग करने के लिए इसके संचालन को बनाए रखने की चुनौती भी आती है।
Bu hikaye Open Eye News dergisinin August 2023 sayısından alınmıştır.
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